शामली। विभिन्न संगठनों से जुडी दर्जनों महिलाओं ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा शीघ्रता एवं आतुरता में समलैंगिक व्यक्तियों के विवाह को विधि मान्यता न देने की मांग को लेकर देश के राष्ट्रपति के नाम एक ज्ञापन एडीएम को सौंपा।
बुधवार को दिए ज्ञापन में उन्होने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने समलैगिंक एवं विपरीत लिंगी आदि व्यक्तियों के विवाह के अधिकार को विधि मान्यता देने का निर्णय लेने में तत्परता बताई है। कहा कि भारत आज सामाजिक, आर्थिक क्षेत्रों की अनेक चुनौतियों का सामना कर रहा है।
तब विषयांतर्गत विषय को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सुनने एवं निर्गीत करने की कोई गंभीर आवश्यकता नही है। देश के नागरिकों की बुनियादी समस्याऐं जैसे गरीबी उन्मूलन, निशुल्क शिक्षा का क्रियान्वयन, प्रदूषण मुक्त पर्यावरण का अधिकार, जन संख्या नियंत्रण की समस्या देश की पूरी आबादी को प्रभावित कर रही है। जिसमें सर्वोच्च न्यायलय द्वारा कोई तत्परता नही दिखाई गई। कहा कि भारत विभिन्न धर्मो, जातियों, उप जातियों का देश है। इसमें शताब्दीयों से केवल जैविक पुरूष एवं जैविक महिला के मध्य विवाह को मान्यता दी गई है।
विवाह की संस्था न केवल दो विषम लैगिंकों का मिलन है, बल्कि मानव जाति की उन्नति भी है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नालसा 2014, नवतेज जौहर 2018 के मानलों में समलैगिंग एवं विपरीत निंगी के अधिकारों को पूर्व से ही संरक्षित किया गया है। यह समुदाय पूरी तरह से उत्पीडित नही है। जैसा कि उनके द्वारा बताया जा रहा है। इसके विपरीत भारत की अन्य पिछडी जातियां, आज भी जातिगत आधार पर शोषित है। जो आज भी अपने अधिकारियों के लिए सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को अपने पक्ष में होने का इंतजार कर रही है। उन्होने कहा कि उक्त विषय पर सभी हितबद्ध व्यक्तियों, संस्थाओं से परामर्श करने के लिए आवश्यक कदम उठाये जाये। समलैगिंग विवाह न्याय पालिका द्वारा वैद्य घोषित नही किया जाये। इस अवसर पर पूनम आर्यद्व नीलम आर्य, सुनीता पाल, रेखा संगल, मधु, नेहा, मेघा, मुनेश देवी, सविता भारद्वाज, मीना मित्तल, ममता त्रिपाठी, दीया आदि मौजूद रही।