अभी हाल में देश की संसद में लोकसभा एवं राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं को 33त्न आरक्षण देने को लेकर जो विधेयक पारित हुआ, उसे लेकर कांग्रेस और कई विपक्षी पार्टियों को यह शिकायत है कि इसमें पिछड़े वर्ग की महिलाओं को आरक्षण नहीं दिया गया है.इसके पहले जब-जब महिलाओं को आरक्षण देने का सवाल आता था तो पिछड़े वर्ग के साथ मुस्लिम महिलाओं को भी आरक्षण देने की बात होती थी. लेकिन ओवैसी जैसे कुछ मुस्लिम परस्त राजनीतिज्ञ के अलावा जो पार्टियां देश में मुस्लिम परस्त मानी जाती हैं, उन्होंने भी उसे मुद्दे पर खुलकर बोलने की हिम्मत नहीं की. उन्हें पता चल चुका है कि अब देश का राष्ट्रीय समाज अर्थात हिंदू समाज जागरूक हो चला है और ऐसी कोई मांग पर जोर देने से बहुमत समुदाय से अलग-थलग होने का खतरा पैदा हो जाएगा।
पिछड़े वर्ग की महिलाओं को आरक्षण देने को लेकर राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी बहुत मुखर रही, यद्यपि सपा और राजद जैसी पिछड़ी जातियों की कही जाने वाली पार्टियां भी इस विधेयक के विरोध में मतदान करने की हिम्मत नहीं कर सकी. लाख टके की बात है कि जब इसमें महिलाओं को आरक्षण देने की बात हो रही है तो क्या इसमें पिछड़े वर्ग की महिलाएं शामिल नहीं है?निश्चित रूप से जब यह कानून लागू होगा तो उसमें पिछड़े वर्ग की महिलाओं को भी पर्याप्त रूप से प्रतिनिधित्व मिलेगा लेकिन इस देश में वोट बैंक की राजनीति करने वालों का की बात ही अलग है।
वे चाहते हैं कि किसी तरह से जातिगत विभाजन बढ़े और उनका सत्ता में आने का मार्ग प्रशस्त हो सके.जातिगत जनगणना की मांग करना भी कांग्रेस समेत दूसरी विपक्षी पार्टियों के लिए यही उद्देश्य है. राहुल गांधी कहते हैं कि केंद्र सरकार में पिछड़ी जातियों के सिर्फ तीन सचिव स्तर के अधिकारी हैं, पता नहीं उन्हें यह आंकड़ा कहां से मिला?क्योंकि विगत कई वर्षों से ऐसा कोई डाटा उपलब्ध नहीं है.यदि राहुल गांधी की बात सच है तो यह एक बड़ी सच्चाई है कि आज जो सचिव स्तर के अधिकारी हैं, वही 1992 के दौर से प्रमोट हुए हैं और उसे वक्त तो केंद्र में कांग्रेस पार्टी की अगुवाई बाली सरकार थी.
जहां तक केंद्र सरकार में अधिकारियों का प्रश्न है तो मोदी सरकार के पूर्व केंद्र में ए श्रेणी के अधिकारी मात्र 9.4त्न हुआ करते थे लेकिन अब मोदी सरकार के दौर में उनकी संख्या 17त्न हो गई है,जो क्रमश: बढ़ते क्रम में है. इसी तरह से बी श्रेणी की अधिकारियों की संख्या मनमोहन सरकार के दौर में 11.6त्नथी, जबकि मोदी सरकार के दौर में 15. 7त्न है. इसी तरह से यूपीए सरकार के दौर में सीश्रेणी के अधिकारियों का प्रतिशत 18.47 था, जो वर्तमान में 22.5त्न तक पहुंच चुका है.जहां तक सरकार में पिछड़े वर्गों के प्रतिनिधित्व का सवाल है तो प्रधानमंत्री मोदी खुद ही पिछड़े समुदाय से हैं. मोदी मंत्रिमंडल के 77 मंत्रियों में 27 पिछड़े समुदाय से आते हैं जो कि 35.01त्न हैं. इसी तरह से बीजेपी के 303 लोकसभा सदस्यों में 113 पिछड़े वर्ग से आते हैं जो कि 37त्न हैं. देश भर में भाजपा के विधायकों की संख्या भी कम से कम 27त्न से तो ज्यादा ही है।
लोगों को यह पता होना चाहिए कि इसके पहले महिला आरक्षण संबंधी विधेयक संसद में चार बार आ चुका है. 1996 में जब संयुक्त मोर्चे की सरकार थी और श्री देवगौड़ा प्रधानमंत्री थे,तब भी यह बिल लाने का प्रयास हुआ था. उसके पश्चात वाजपेई सरकार में 1998 और 2002 में इस बिल को संसद में पास करने का प्रयास हुआ,लेकिन कई दलों की सरकार होने के चलते ऐसा संभव नहीं हो पाया.2010 में मनमोहन सरकार के दौर में राज्यसभा में यह बिल पास भी हो गया लेकिन मुलायम,लालू और शरद यादव के विरोध के चलते लोकसभा में इसे प्रस्तुत करने की यूपीए सरकार की हिम्मत ही नहीं पड़ी और उक्त बिल अपने आप मर गया. उल्लेखनीय बात यह कि उक्त किसी भी महिला आरक्षण संबंधी बिल में कोटेपर कोका प्रावधान नहीं था,यूपीए सरकार के दौर में भी कोटे पर कोटा यानी पिछड़ी वर्ग की महिलाओं के लिए आरक्षण का प्रावधान नहीं था।
उस वक्त के विधि मंत्री वीरप्पा मोइली ने स्पष्ट कहा था कि संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है.सवाल यह है कि यदि उस वक्त संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं था तो अब कैसे हो सकता है? यदि ऐसा किया भी जाता तो निश्चित रूप से सर्वोच्च न्यायालय उसे अधिनियम को स्टेकर देता.ऐसी स्थिति में बड़ा सवाल यह है कि राहुल गांधी अब पिछड़े वर्ग की महिलाओं को लेकर हाय तौबा क्यों मचा रहे हैं? इसे तो विभाजनकारी और वोटकी राजनीति ही कहा जा सकता है. बड़ा सवाल यह है कि जब संविधान निर्माताओं ने देश की संसद और विधानसभाओं में पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण का प्रावधान नहीं रखा तो फिर उसके लिए इस तरह का हो हल्ला क्यों? दूसरी बड़ी बात है कि यदि कांग्रेस पार्टी को पिछड़े वर्गों से ऐसी पक्षधर्ता है तो उसने आज तक किसी पिछड़े वर्ग के व्यक्ति को प्रधानमंत्री क्यों नहीं बनाया? यहां तक कि देवगौड़ा को प्रधानमंत्री पद से साल भर में ही चलता कर दिया .पिछड़े वर्ग के अपने ही पार्टी अध्यक्ष सीताराम केसरी को बुरी तरह से अपमानित करके अध्यक्ष पद से हटा दिया. इसके अलावा भी पिछड़े वर्ग की महिलाओं को अधिक से अधिक टिकट देने से कांग्रेस पार्टी को कौन रोकता है?
रहा सवाल जाति जनगणना करने का- जिसका कांग्रेस पार्टी से लेकर देश में सभी जाति की राजनीति करने वाली पार्टियां मांग कर रही हैं. तो इस संबंध में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने जातिगत जनगणना को विभाजनकारी बताते हुए स्वयं इसका विरोध किया था पर किसी तरह सत्ता पाने की हड़बड़ी में राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी को कुछ दिखाई नहीं देता. 2011 में यूपीएस सरकार द्वारा जनगणना में जाति जनगणना भी कराई गई थी, लेकिन आश्चर्यजनक तथ्य कि 2014 तक सत्ता में रहते हुए भी उक्त जाति जनगणना को जारी नहीं किया।
जब महाराष्ट्र सरकार ने स्थानीय चुनाव के संदर्भ में पिछड़ी जातियों को आरक्षण देने के लिए उक्त जनगणना का उपयोग करना चाहा तो पता चला कि उक्त जनगणना में भयंकर गलतियां हैं, इनका किसी भी रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता.इससे समझा जा सकता है कि कांग्रेस पार्टी का जाति जनगणना के मामले में भी कितना दोहरा रवैया है.कर्नाटक में 2013 से 2018 तक कांग्रेस पार्टी सत्ता में रही और 2015 में उसने जाति जनगणना भी कराई,लेकिन उक्त जनगणना को कभी भी जारी नहीं किया.यहां तक कि इधर कई महीनो से कर्नाटक की सत्ता में होने के बावजूद उक्त जनगणना को जारी नहीं कर रही है।
इससे कांग्रेस पार्टी का पिछड़े वर्ग के प्रति और पिछड़े वर्ग की महिलाओं के प्रति रवैये को समझा जा सकता है. निर्णायक बात यह है कि विचारधारा विहीन कांग्रेस पार्टी को यह समझ में नहीं आ रहा कि वह सत्ता पाने के लिए किन मुद्दों के साथ खड़ी हो और किनका विरोध करें जिसका सबसे बड़ा उदाहरण वर्तमान में सनातन के प्रति उसका रवैया है।
-वीरेंद्र सिंह परिहार