Monday, December 23, 2024

 अगर पति अपनी पत्नी से संबंध नहीं बनाएगा तो किससे कहेगा-हाईकोर्ट

लखनऊ। इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा हाल ही में दिए गए इस निर्णय में पति-पत्नी के बीच संबंधों और वैवाहिक अधिकारों पर महत्वपूर्ण टिप्पणी की गई है। कोर्ट ने कहा कि एक पति का अपनी पत्नी से यौन संबंध बनाने की मांग करना स्वाभाविक है, और इसे क्रूरता नहीं माना जा सकता। हालांकि, इस मामले में पति पर पत्नी ने दहेज मांग, प्रताड़ना और अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने का आरोप लगाया था, जिस पर कोर्ट ने इन दावों को खारिज कर दिया।

 

इस निर्णय के बाद यह बहस भी उठी है कि वैवाहिक संबंधों में आपसी सहमति का क्या महत्व है और क्या किसी व्यक्ति की इच्छाओं के विरुद्ध संबंध बनाना उचित है। भारतीय कानून के अनुसार, किसी भी संबंध में सहमति महत्वपूर्ण होती है, चाहे वह वैवाहिक संबंध ही क्यों न हो। इसलिए यह निर्णय कानूनी और नैतिक मुद्दों को लेकर लोगों के बीच बहस का विषय बन सकता है।

यह मामला 23 जुलाई 2018 का है, जब नोएडा की एक महिला ने अपने पति और ससुराल वालों के खिलाफ गंभीर आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज कराई। महिला ने अपने पति पर दहेज की मांग, शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना, और अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर करने का आरोप लगाया। शिकायत में महिला ने कहा कि उसका पति शराब के नशे में उसके साथ दुर्व्यवहार करता था, अश्लील फिल्में देखता था, और उसी प्रकार के यौन संबंध बनाने के लिए उस पर दबाव डालता था। जब उसने इसका विरोध किया, तो पति ने उसकी जान लेने की कोशिश की।

महिला के अनुसार, उनकी शादी 7 दिसंबर 2015 को हुई थी, और शादी के आठ महीने बाद वह सिंगापुर अपने पति के पास गई, जहां भी उसके पति का व्यवहार हिंसक था। उसने दावा किया कि सिंगापुर में भी उसे शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना का सामना करना पड़ा। इस घटना ने वैवाहिक जीवन में सहमति और सम्मान के महत्व को लेकर एक गंभीर चर्चा को जन्म दिया है, और इस प्रकार के मामलों में कानून के हस्तक्षेप की आवश्यकता पर भी सवाल खड़े किए हैं।

इलाहाबाद हाईकोर्ट के हालिया फैसले ने इस मामले को विशेष ध्यान में रखते हुए वैवाहिक संबंधों में सहमति, अधिकारों और मर्यादा के मुद्दे को एक नई दृष्टि से देखने की जरूरत को रेखांकित किया है।

 

इस मामले की सुनवाई के दौरान इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पाया कि पत्नी द्वारा लगाए गए आरोपों के समर्थन में ठोस सबूतों की कमी थी। कोर्ट ने पति द्वारा दायर याचिका की गहन जांच की और पाया कि एफआईआर में किए गए आरोप अस्पष्ट और सामान्य थे, जिनमें प्रताड़ना या दहेज की मांग को स्पष्ट रूप से साबित करने वाले तथ्य नहीं थे।

सबूतों की कमी के कारण कोर्ट ने यह निष्कर्ष निकाला कि पत्नी ने अपने आरोपों को सही ठहराने के लिए कोई ठोस प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया। महिला न तो शारीरिक चोट के प्रमाण दे पाई और न ही कोई अन्य विश्वसनीय सबूत प्रस्तुत कर सकी जिससे यह साबित होता कि उसके साथ वास्तव में कोई क्रूरता की गई थी। इसके साथ ही, दहेज मांग का स्पष्ट और प्रमाणित उल्लेख भी अनुपस्थित था।

इस आधार पर कोर्ट ने माना कि यह मामला क्रूरता या दहेज उत्पीड़न के स्पष्ट प्रमाणों के बिना नहीं टिक सकता, जिससे पति के पक्ष में फैसला सुनाया गया।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि पति-पत्नी के बीच यौन संबंध बनाना एक स्वाभाविक और वैवाहिक जीवन का अभिन्न हिस्सा है। यदि पति अपनी पत्नी से यौन संबंध बनाने की इच्छा व्यक्त करता है, तो इसे क्रूरता की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। कोर्ट ने इस तर्क के आधार पर कहा कि पत्नी द्वारा लगाए गए आरोपों के आधार पर भारतीय दंड संहिता की धारा 498-A के तहत क्रूरता का मामला बनाना सही नहीं होगा।

सुनवाई के दौरान यह स्पष्ट हुआ कि महिला द्वारा लगाए गए आरोपों के समर्थन में पर्याप्त और ठोस प्रमाण मौजूद नहीं थे, विशेषकर शारीरिक चोट या अन्य विश्वसनीय साक्ष्य, जो पति की प्रताड़ना को साबित कर सकते। दहेज मांग का भी कोई ठोस सबूत नहीं प्रस्तुत किया गया था।

सभी तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, हाईकोर्ट ने निर्णय किया कि इस मामले में आरोप प्रमाणित नहीं होते, और इसके आधार पर केस को रद्द कर दिया गया।

इस मामले में, 23 जुलाई 2018 को नोएडा की एक महिला ने अपने पति और उसके परिवार के खिलाफ गंभीर आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज कराई। महिला ने दावा किया कि उसका पति शराब के नशे में उसके साथ अश्लील हरकतें करता था, अश्लील फिल्में देखता था, और उस पर भी इसी तरह के यौन संबंध बनाने का दबाव डालता था। उसने आरोप लगाया कि जब उसने इसका विरोध किया, तो पति ने उसकी जान लेने की कोशिश की।

महिला ने यह भी कहा कि उनकी शादी 7 दिसंबर 2015 को हुई थी, और आठ महीने बाद जब वह सिंगापुर में अपने पति के पास रहने गई, तो वहां भी उसके पति का व्यवहार हिंसक हो गया। उसने दावा किया कि उसे सिंगापुर में शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया।

इस मामले में महिला ने पति पर दहेज की मांग और अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने का आरोप भी लगाया था। हालाँकि, जब मामला अदालत में पहुंचा, तो आरोपों के समर्थन में ठोस साक्ष्य की कमी के चलते इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मामले को खारिज कर दिया। अदालत ने पति-पत्नी के बीच यौन संबंधों को स्वाभाविक मानते हुए कहा कि इसे क्रूरता नहीं माना जा सकता, और महिला द्वारा लगाए गए आरोपों में पर्याप्त सबूत नहीं थे।

इस मामले की सुनवाई के दौरान, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह पाया कि पत्नी द्वारा लगाए गए आरोपों के समर्थन में कोई ठोस सबूत नहीं थे। कोर्ट ने पति द्वारा दायर याचिका की गहन जांच की और देखा कि एफआईआर में किए गए आरोप सामान्य और अस्पष्ट थे।

महिला किसी भी प्रकार की शारीरिक चोट के प्रमाण या अन्य विश्वसनीय साक्ष्य पेश करने में असमर्थ रही, जिससे यह सिद्ध हो सके कि उसके साथ वास्तव में कोई क्रूरता हुई थी। इसके अलावा, दहेज मांग का भी स्पष्ट और सुनिश्चित उल्लेख नहीं किया गया था।

इन तथ्यों के आधार पर, कोर्ट ने यह निष्कर्ष निकाला कि आरोपों में गंभीरता और प्रमाण का अभाव है, और इसलिए इन आरोपों के आधार पर कोई ठोस कानूनी कार्रवाई करना उचित नहीं होगा। परिणामस्वरूप, हाईकोर्ट ने मामले को रद्द कर दिया। इस निर्णय ने यह भी स्पष्ट किया कि न्यायिक प्रक्रिया में ठोस सबूतों की आवश्यकता कितनी महत्वपूर्ण होती है, खासकर जब गंभीर आरोपों का सामना किया जाता है।

 

कोर्ट ने कहा कि पति-पत्नी के बीच यौन संबंध बनाना स्वाभाविक है और यदि पति इस संदर्भ में पत्नी के साथ संबंध बनाने की इच्छा रखता है तो यह क्रूरता की श्रेणी में नहीं आता। कोर्ट ने माना कि इस मामले में आरोपों के आधार पर धारा 498-A के तहत क्रूरता का मामला बनाना गलत होगा। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए कहा कि महिला द्वारा लगाए गए आरोपों में ठोस प्रमाणों का अभाव है और केस को रद्द कर दिया।

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