आज देव प्रबोधिनी एकादशी है, जिसे देव उठनी एकादशी भी कहा जाता है। मान्यता है कि अमुक तिथि में देवता जागते हैं। ‘देवता कभी सोते भी हैं’ यह विचार ही भ्रम पैदा करने वाला है। किसी विचार से हमारे तैंतीस करोड़ देवता माने जाते हैं।
वास्तव में ये तैंतीस कोटि देवता हैं। कोटि के दो अर्थ हैं कोटि अर्थात श्रेणी दूसरे कोटि का अर्थ है करोड। भ्रमवश हमने कोटि को श्रेणी की अपेक्षा करोड़ अर्थ में ले लिया है। देवता वें होते हैं, जो सदैव हमें देते हैं बदले में लेते कुछ नहीं। ये तैंतीस देवता हैं-पृथ्वी, द्यौ, अग्नि, वायु, अन्तरिक्ष, चन्द्रमा, सूर्य और नक्षत्र ये आठ वसु प्राण, अपान, ब्यान, उदान, समान, नाग कूर्म्म, कृकल, देवदत्त, धनंजय {पांच प्राण पांच उप प्राण} और जीवात्मा ये ग्यारह रूद्र हैं।
ये रूद्र इसलिए कि जब शरीर को त्यागते हैं, तक रूदन कराने वाले होते हैं। संवतसर के बारह महीने बारह आदित्य हैं, क्योंकि वे सबकी आयु को लेते जाते हैं। विद्युत {बिजली} का नाम इन्द्र इस हेतु है कि यह परम ऐश्वर्य को देने वाली है।
यज्ञ को प्रजापति कहा गया है, क्योंकि उससे वायु, वृष्टि, जल औषध् की शुद्धि होती है, जिससे प्रजा का पालन तथा रक्षा होती है। इस प्रकार ये तैंतीस कोटि देवता हुए, जिन्हें हमने तैंतीस करोड़ देवता बना दिया है। ये देवता कभी सोते नहीं फिर इनके जागने और उठने का प्रश्न ही पैदा नहीं होता। ये तो सदा आपके कल्याण में ही लगे रहते है। आप सभी को आज देव उठनी एकादशी की हार्दिक शुभकामनाएं, आपका दिन मंगलमय हो !