नेहा और पलक का परिचय तब हुआ, जब नेहा पलक की सहपाठिन बनी। पलक पहले से नेहा के सम्बन्ध में कुछ नहीं जानती थी।
मात्र एक या डेढ़ माह के परिचय में दोनों की मित्रता हो गई, क्योंकि पलक एवं नेहा एक ही मोहल्ले में रहती थीं, सो संग-संग कॉलेज जाने लगीं।
एक रात्रि लगभग दस बजे का समय रहा होगा कि पलक के पास नेहा के पिता का फोन आया- ‘पलक तुम कहां हो?’
‘जी…घर पर ही हूं… बताइए…?’
‘मुझे अपने घर का पता बताओ… तुमसे कुछ जरूरी बात करनी है।’ नेहा के पिता का स्वर लरज रहा था।
‘अंकल… फोन पर बता दीजिए… क्या बात है…?’ अज्ञात आशंका से पलक कांप उठी।
‘नहीं… फोन पर बात नहीं होगी… घर का पता बताइए?
पलक ने घर का पता बताया ही था कि पांच-सात मिनट में ही नेहा के पिता अपने एक मित्र के साथ पलक के घर पहुंच गए।
इससे पहले कि पलक अभिवादन कर चाय-पानी को पूछती, नेहा के पिता ने कहा- ‘पलक जल्दी बताओ नेहा कहां है…?’
‘मतलब… नेहा घर में नहीं है क्या?’ पलक ने आश्चर्य व्यक्त किया।
‘अनजान बनने का नाटक मत करो… साफ-साफ बताओ कि वह कहां गई है… तुम्हारी सहेली है… तुम्हें सब कुछ पता है…।’ नेहा के पिता के स्वर में कड़कपन था।
‘अंकल… कॉलेज से हम साथ लौटे हैं, वह अपने घर चली गई, फिर क्या हुआ… मुझे कुछ भी मालूम नहीं…।’ पलक रुआंसी हो गई।
‘इतनी मासूम भी मत बनो… तुम सब जानती हो, कॉलेज में उससे कौन-सा लड़का मिलता है, वह किसके साथ गई है…? नेहा के पिता ने सच उगलवाने के लिए दबाव बनाया।
‘अंकल… सच कह रही हूं… मैं उसके बारे में कुछ नहीं जानती…।’
‘अब तुम्हें पुलिस के हवाले करना पड़ेगा। पुलिस की मार पड़ेगी तो सारा सच उगलना ही पड़ेगा।’ नेहा के पिता ने पलक को डराया।
पलक डर गई, बोली- ‘मैं सच नहीं जानती, फिर भी नेहा की डायरी में खोजो… वह अपने परिचितों के फोन नम्बर उसमें ही लिखती है…।’
नेहा के पिता लौट गए। नेहा के कॉलेज बैग में डायरी ढूंढ़ी- कुछ अपरिचित फोन नम्बर मिले किन्तु नेहा उस रात नहीं लौटी। पलक नेहा के पिता के निशाने पर प्रथम संदिग्ध थी।
तीन दिन बाद नेहा लौटी तो ज्ञात हुआ कि पलक नेहा के चरित्र, चाल-चलन व आदतों से अनभिज्ञ ही थी।
पलक विचारमग्न थी, बिना किसी अपराध के वह अज्ञात आशंका एवं अपराध से त्रस्त रही। अन्तत: नेहा से दूरी बनाने में ही उसने भलाई समझी।
मात्र एक या डेढ़ माह के परिचय में दोनों की मित्रता हो गई, क्योंकि पलक एवं नेहा एक ही मोहल्ले में रहती थीं, सो संग-संग कॉलेज जाने लगीं।
एक रात्रि लगभग दस बजे का समय रहा होगा कि पलक के पास नेहा के पिता का फोन आया- ‘पलक तुम कहां हो?’
‘जी…घर पर ही हूं… बताइए…?’
‘मुझे अपने घर का पता बताओ… तुमसे कुछ जरूरी बात करनी है।’ नेहा के पिता का स्वर लरज रहा था।
‘अंकल… फोन पर बता दीजिए… क्या बात है…?’ अज्ञात आशंका से पलक कांप उठी।
‘नहीं… फोन पर बात नहीं होगी… घर का पता बताइए?
पलक ने घर का पता बताया ही था कि पांच-सात मिनट में ही नेहा के पिता अपने एक मित्र के साथ पलक के घर पहुंच गए।
इससे पहले कि पलक अभिवादन कर चाय-पानी को पूछती, नेहा के पिता ने कहा- ‘पलक जल्दी बताओ नेहा कहां है…?’
‘मतलब… नेहा घर में नहीं है क्या?’ पलक ने आश्चर्य व्यक्त किया।
‘अनजान बनने का नाटक मत करो… साफ-साफ बताओ कि वह कहां गई है… तुम्हारी सहेली है… तुम्हें सब कुछ पता है…।’ नेहा के पिता के स्वर में कड़कपन था।
‘अंकल… कॉलेज से हम साथ लौटे हैं, वह अपने घर चली गई, फिर क्या हुआ… मुझे कुछ भी मालूम नहीं…।’ पलक रुआंसी हो गई।
‘इतनी मासूम भी मत बनो… तुम सब जानती हो, कॉलेज में उससे कौन-सा लड़का मिलता है, वह किसके साथ गई है…? नेहा के पिता ने सच उगलवाने के लिए दबाव बनाया।
‘अंकल… सच कह रही हूं… मैं उसके बारे में कुछ नहीं जानती…।’
‘अब तुम्हें पुलिस के हवाले करना पड़ेगा। पुलिस की मार पड़ेगी तो सारा सच उगलना ही पड़ेगा।’ नेहा के पिता ने पलक को डराया।
पलक डर गई, बोली- ‘मैं सच नहीं जानती, फिर भी नेहा की डायरी में खोजो… वह अपने परिचितों के फोन नम्बर उसमें ही लिखती है…।’
नेहा के पिता लौट गए। नेहा के कॉलेज बैग में डायरी ढूंढ़ी- कुछ अपरिचित फोन नम्बर मिले किन्तु नेहा उस रात नहीं लौटी। पलक नेहा के पिता के निशाने पर प्रथम संदिग्ध थी।
तीन दिन बाद नेहा लौटी तो ज्ञात हुआ कि पलक नेहा के चरित्र, चाल-चलन व आदतों से अनभिज्ञ ही थी।
पलक विचारमग्न थी, बिना किसी अपराध के वह अज्ञात आशंका एवं अपराध से त्रस्त रही। अन्तत: नेहा से दूरी बनाने में ही उसने भलाई समझी।
डॉ. सुधाकर आशावादी – विभूति फीचर्स