आज मानवता खतरे में है। आतंकवाद और उसमें भी अतिवाद के कारण जन-जन के प्राणों पर संकट छाया है। विश्व के कुछ देश राष्ट्रहित के बहाने एक-दूसरे की जड़े काटने लगे हैं। नये-नये अस्त्र-शस्त्र मानवता का अस्तित्व मिटाने पर आमादा है।
कुछ धर्म के नाम पर इंसान के खून के प्यासे हैं, इसी को स्वर्ग प्राप्ति का रास्ता बता रहे हैं। बड़े ही नहीं बच्चे भी काल के गाल में समा रहे हैं। आज भौतिक सुखों में तो वृद्धि हो रही है, परन्तु मानवता मर रही है।
केवल भारतीय संस्कृति ही ऐसी है, जिस पर चलकर मानवता का दीप प्रज्ज्वलित किया जा सकता है, परन्तु दुख इसी बात का है कि हम ही अपनी संस्कृति को भूलते जा रहे हैं सभी देश यदि इस संस्कृति को अपना ले जिसका मूल सिद्धांत ही वसुधैव कुटम्बकम् है तो आपसी सौहार्द बढाया जा सकता है, हिंसा और आतंकवाद का खात्मा किया जा सकता है।
भटके हुए लोगों को यह समझाया जाये कि स्वर्ग अच्छे कर्म करके प्राप्त किया जा सकता है, किसी के जीवन की रक्ष्ज्ञा कर प्राप्त किया जा सकता है। दूसरों के प्राण लेकर तो नरक ही भोगना होगा। अन्तरात्मा में झांककर देखिए इसका उत्तर हां में मिलेगा।