Friday, October 18, 2024

अनमोल वचन

महाभारत काल में महात्मा विदुर ने एक प्रश्र के उत्तर में धृतराष्ट्र को पाप-पुण्य के बार में समझाते हुए कहा ‘पुण्स्य फलमिच्छंति, पुण्यं नेच्छन्ति मानवा:। फल पापस्थ नेच्छन्ति यत्नात् कुर्वन्ति मानवा:।। अर्थात पुण्य का फल कौन नहीं चाहता, सब कोई चाहता है, किन्तु सच्चे हृदय से पुण्य के कार्य कितने लोग करते हैं निश्चय ही बहुत कम, बहुत कम और पाप का फल कौन चाहता है? निश्चय ही कोई नहीं-कोई नहीं। आश्चर्य है कि लोग डर कर भी पाप करते हैं, प्रयत्नपूर्वक करते हैं, पर जब फल भुगतने की बारी आती है तो चीख मार कर रोते हैं। सभी को यह याद रखना चाहिए कि पुण्य का फल पुण्य में ही पाता है, पुण्य करने वाला नाम कमाता है, सम्मान पाता है, जबकि पाप कर्म करता हुआ पापी अपने पाप कर्म के कारण लोक में निन्दित होता है और पाप का फल दुख के रूप में पाता है। जिन कर्मों से आत्मा को संतोष प्राप्त हो, मनुष्य की सर्वत्र प्रशंसा हो, कीर्ति बढे, सम्मान मिले, वही पुण्य कर्म और जिन कर्मों से मनुष्य पतित हो वह पाप कर्म समझना चाहिए।

Related Articles

STAY CONNECTED

74,306FansLike
5,445FollowersFollow
129,386SubscribersSubscribe

ताज़ा समाचार

सर्वाधिक लोकप्रिय