अर्थववेद का ऋषि कहता है कि ‘पुरूषार्थ यदि मेरे दांये हाथ में है तो सफलता मेरे बांये हाथ का खेल है। जो व्यक्ति कठिन परिश्रम करते है, ईश्वर उन्हीं का सच्चा साथी है।’ धर्म ग्रंथों के ऐसे मंत्र, श्लोक और वाक्य पढना उन्हीं का सार्थक है, जो आलस्य से दूर रहकर निरन्तर श्रम करते हैं, क्योंकि आलस्य करना पाप है। जो पूरी शक्ति से श्रम नहीं करते उन्हें लक्ष्मी की प्राप्ति नहीं होती। निष्क्रिय और आलसी से लक्ष्मी रूठ जाया करती है। जो बिना परिश्रम किये सब कुछ पाना चाहते हैं वे आत्मा के प्रकाश से वंचित ही रहते हैं। परमेश्वर उन्हीं की सहायता करते हैं, जो अपनी सहायता स्वयं करते हैं। इसके लिए चाहिए आत्म विश्वास, लगन, धैर्य, संतोष, साहस और कर्म, इन मूल्यों को जो अपना लेता है उसे कभी निराशा का मुंह देखना नहीं पड़ता न ही कभी समाज में हंसी का पात्र बनना पड़ता है। पुरूषार्थ करते समय हमें अपनी सफलता पर विश्वास रहना चाहिए। जो व्यक्ति पुरूषार्थ के साथ यह भी देख लेते हैं कि हमारी सफलता के मूल में किसी के हितों का बलिदान अथवा किसी को पीड़ा अथवा हानि तो नहीं पहुंच रही है, वहीं सच्चे अर्थों में कर्मयोगी है।