अगले महीने भारतीय नव संवत्सर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, 9 अप्रैल 24 से प्रारंभ हो रहा है। भारतीय मौसम, फसल, परम्परा और संस्कृति के अनुरूप समसामयिक परिवेश में यही हमारा नया वर्ष है। विदेशी मौसम और परम्पराओं के अनुरूप हम एक जनवरी को नववर्ष का प्रारम्भ मानकर अपना हर गणित गडबडा लेते हैं जो किसी भी दशा में उचित नहीं कहा जा सकता है।
दुनियाभर में पचास से अधिक कैलेंडर प्रचलन में हैं। एक अनुमान के मुताबिक भारत में भी 36 तरह के प्राचीन कैलेंडर वर्ष माने जाते हैं हालांकि, इनमें से अधिकांश अब प्रचलन से बाहर हैं। दुनिया भर में कई देशों के जो अपने कैंलेंडर हैं उनमें नए वर्ष की शुरुआत फरवरी से अप्रैल के मध्य होती है। हमारे यहां भी विक्रम संवत, शक संवत, हिजरी सन और सप्तर्षि संवत आदि प्रचलित हैं। इसके अलावा भी कई सारे देशों में अलग-अलग मान्यताओं के कैलेंडर भी चलन में हैं मगर पूरी दुनिया में नया साल ग्रिगोरियन कैलेंडर के अनुसार ही मनाया जाता है।
वर्तमान ग्रिगोरियन कैलेंडर की शुरुआत 438 साल पहले 15 अक्तूबर, 1582 को हुई थी। इस कैलेंडर को आखिरी बार पोप ग्रिगरी 13वें ने संशोधित किया था। ग्रिगोरियन कैलेंडर के अनुसार क्रिसमस हर वर्ष 25 दिसंबर को निश्चित हो गया जबकि 31 दिसंबर को साल का आखिरी दिन होता है और नया साल एक जनवरी को शुरू होता है। अमेरिका के नेपल्स के फिजीशियन एलॉयसिस लिलिअस ने 15 अक्तूबर, 1582 को ग्रिगोरियन कैलेंडर के तौर पर एक नया कैलेंडर इस्तेमाल के लिए प्रस्तावित किया था मगर उसे व्यापक मान्यता नहीं मिल सकी।
इससे पहले अधिकाँश देशों में रूस का जूलियन कैलेंडर प्रचलन में था जिसमें साल में 10 महीने होते थे। इसमें समस्या यह थी कि क्रिसमस साल में एक निश्चित दिन नहीं आता था। जूलियन कैलेंडर को ईसा पूर्व 46 में जूलियस सीजर ने संशोधित किया था। इससे भी पहले तक जो कैलेंडर चलता था, वह रोमन कैलेंडर था। उसमें भी साल के सिर्फ 304 दिन ही होते थे। महीने 10 ही थे। वस्तुत: कोई भी कैलेंडर या पंचाग सूर्य चक्र या चंद्रचक्र की गणना पर आधारित होता है। सूर्य चक्र पर आधारित कैलेंडर में 365 दिन होते हैं जबकि चंद्र चक्र पर आधारित कैलेंडर में 354 दिन होते हैं। ग्रिगोरियन कैलेंडर सूर्य चक्र पर आधारित है।
इसमें हर महीने में बराबर दिन भी नहीं हैं। चार माह 30 दिन वाले हैं, छह माह 31 दिन वाले हैं। साथ ही फरवरी एक ऐसा महीना है जिसमें 28 दिन होते हैं लेकिन हर तीन साल बाद यानी चौथा वर्ष लीप ईयर होता है। तब फरवरी में 28 के स्थान पर 29 दिन हो जाते हैं।
नव वर्ष उत्सव 4000 वर्ष पहले से बेबीलोन में मनाया जाता था लेकिन उस समय नए वर्ष का ये त्यौहार 21 मार्च को मनाया जाता था जो कि वसंत के आगमन की तिथि भी मानी जाती थी। प्राचीन रोम में भी नव वर्षोत्सव के लिए यही तिथि चुनी गई थी। रोम के शासक जूलियस सीजर ने ईसा पूर्व 45वें वर्ष में जब जूलियन कैलेंडर की स्थापना की, उस समय विश्व में पहली बार एक जनवरी को नए वर्ष का उत्सव मनाया गया। ऐसा करने के लिए जूलियस सीजर को पिछला वर्ष, यानि, ईसापूर्व 46 ईस्वी को 445 दिनों का करना पड़ा था। हिब्रू मान्यताओं के अनुसार भगवान द्वारा विश्व को बनाने में सात दिन लगे थे। इन सात दिन के बाद नया वर्ष मनाया जाता है। यह दिन ग्रेगरी के कैलेंडर के मुताबिक 5 सितम्बर से 5 अक्टूबर के बीच आता है।
हमारे देश में आज भी अधिकांश धार्मिक कार्य हिंदू लोग विक्रम/शक संवत और मुस्लिम लोग हिजरी सन के अनुसार ही करते हैं। रोजमर्रा का काम ग्रिगोरियन कैलेंडर से किया जाता है। ग्रिगोरियन कैलेंडर को मानना एक प्रकार से हमारी देश की मजबूरी भी थी। ग्रिगोरियन कैलेंडर स्वीकार किए जाने के वक्त देश में ब्रिटिश शासन लागू था। इसलिए, जब 1752 में ब्रिटेन यानी यूनाइटेड किंगडम ने ग्रिगोरियन कैलेंडर को स्वीकारा तो दुनिया में जहां भी उनका शासन था और उपनिवेश थे, वहां ग्रिगोरियन कैलेंडर को लागू कर दिया गया। इस सम्बन्ध में अधिकाँश सौर वैज्ञानिकों का मानना है कि यह पूरी तरह व्यवहारिक नहीं है।
भारतीय नववर्ष मनाये जाने के तर्कसंगत तथ्य जो भारतीय ज्योतिष गणनाकारों द्वारा दिए जाते है उसमें सबसे पहला तथ्य यह है कि वैदिक ग्रंथो में लिखा है कि इस दिन सृष्टि का चक्र प्रथम बार विधाता ने प्रवर्तित किया था। हमारा नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को शुरू होता है। पेड़ पोधों में फूल, कली आदि इसी समय आना शुरू होते है, वातावरण में एक नया उल्लास होता है जो मन को आह्लादित कर देता भगवान विष्णु का प्रथम अवतार भी इसी दिन हुआ था। नवरात्र की शुरुआत इसी दिन से होती है।
इस समय न शीत न ग्रीष्म लगभग सम मौसम होता है। प्रभु श्रीराम का जन्म भी चैत्र शुक्ल नवमी को माना जाता है। यह दिन कल्प, सृष्टि, युगादि का प्रारंभिक दिन है। इसके अतिरिक्त चैत्र मास का वैदिक नाम है, मधु मास। सारी वनस्पति और सृष्टि प्रस्फुटित होती है पके मीठे अन्न के दानों में, आम की मन को लुभाती खुशबू में, वसंतदूत कोयल की गूंजती स्वर लहरी में।
भारत के विभिन्न भागों में भी नव वर्ष दो-तीन प्रमुख तिथियों को मनाया जाता है। प्राय: पहली दो तिथियाँ मार्च और अप्रैल के महीने में पड़ती है।
पहली तिथि मेष संक्रान्ति अथवा वैशाख संक्रान्ति(बैसाखी) अथवा विषुव/विषुवत संक्रान्ति(बिखौती) अथवा सौरमण युगादि भी कहते हैं। इस तिथि को मुख्य रूप से सौरमण वर्ष पद मानने वाले प्रान्त नये वर्ष के रूप से मनाते हैं, जैसे तमिलनाडु और केरल। इसके अतिरिक्त बंगाल और नेपाल भी इसे नव वर्ष के रूप में मनाते है। हिमालयी प्रान्तों जैसे: उत्तराखण्ड, हिमाचल और जम्मू के साथ साथ पंजाब, पूर्वांचल और बिहार में केवल एक पर्व के रूप मनाया जाता है पर नव वर्ष के रूप में नहीं। उत्तराखंड, हिमाचल, जम्मू, पंजाब, पूर्वांचल और बिहार में नव सम्वतसर वर्ष प्रतिपदा के दिन आरम्भ होता है। सिखों के द्वारा नवनिर्मित नानकशाही कैलंडर के अनुसार सिख नव वर्ष चैत्र संक्रांति को मनाया जाता है।
दूसरी तिथि वर्ष प्रतिपदा (चैत्र शुक्ल प्रतिपदा) अथवा चन्द्रमण युगादि। इस तिथि को मुख्य रूप से चन्द्रमण वर्षपद मानने वाले प्रान्त नये वर्ष के रूप से मनाते हैं। कर्नाटक एवं तेलुगू राज्य- तेलंगाना और आन्ध्र प्रदेश में इसे उगादि (युगादि=युग+आदि का अपभ्रंश) के रूप में मनाते हैं। यह चैत्र महीने का पहला दिन होता है। कश्मीरी नववर्ष भी इसी दिन होता है और उसे नवरेह के नाम से जाना जाता है। महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा के रूप में यही दिन मनाया जाता है। और सिन्धी इसी दिन को चेटी चंड कहते हैं। सिंधी उत्सव चेटी चंड, उगाड़ी और गुड़ी पड़वा एक ही दिन मनाया जाता है। मदुरै में चित्रैय महीने में चित्रैय तिरूविजा नए बरस के रूप में मनाया जाता है।
तीसरी तिथि बलि प्रतिपदा (कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा)। यह दीपावली के अगले दिन मनाया जाता है। दीपावली पर सब हिन्दू महालक्ष्मी पूजा कर एक वर्ष के लेखे जोखे को बंद कर देते हैं। अगले दिन से नये वाणिज्यिक वर्ष का आरम्भ होता है। मारवाड़ी नया बरस दीपावली के अगले दिन होता है। गुजराती नया बरस भी दीपावली के अगले दिन होता है। इस दिन जैन धर्म का नववर्ष भी होता है। उचित होगा कि हम भी अपनी परम्पराओं के अनुसार ही निश्चित दिवस पर नववर्षोत्सव मनाएं।
-राज सक्सेना