दालें, जिनमें दाल, छोले, बीन्स और मटर शामिल हैं, जो प्रोटीन से लेकर फाइबर, आयरन जैसे कई जरूरी पोषक तत्वों के साथ विटामिन्स और मिनरल्स का भी खजाना होती हैं। दालें सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि दुनियाभर में भी खानपान का जरूरी हिस्सा हैं। शाकाहारी जीवनशैली के लिए तो दालें ही प्रोटीन का सबसे बड़ा स्रोत हैं। कम वसा वाले और कम सोडियम वाले इस ऑप्शन को डाइट में शामिल कर न केवल असाध्य बीमारियों से लड़ा जा सकता है बल्कि जलवायु परिवर्तन एवं पर्यावरण के संकट से भी बचा जा सकता है।
दालों में भरपूर मात्रा में पोषक तत्व पाए जाते हैं। दालें न केवल पोषक हैं, वे विश्व की भूख और गरीबी को मिटाने की दिशा में स्थायी खाद्य प्रणालियों के विकास में भी योगभूत हैं। मांसाहार पर्यावरण के सम्मुख एक गंभीर चुनौती बनता जा रहा है क्योंकि एक किलो दाल के उत्पादन के लिए 1250 लीटर पानी की जरूरत होती है जबकि एक किलो बीफ के लिए 13,000 लीटर की जरूरत होती है।
देश-विदेश में भी दालों का प्रचलन एवं महत्व कम नहीं है, लेकिन परम्परागत भारतीय भोजन में पौष्टिकता के कारण दालों का विशेष महत्व है। 2014 में प्रधानमंत्री पद की शपथ लेते ही नरेंद्र मोदी ने दलहन क्रांति की कवायद शुरू कर दी। सरकार ने दालों के घरेलू उत्पादन बढ़ाने के उपाय सुझाने हेतु सुब्रमण्यम समिति का गठन किया। समिति ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि लंबे समय से भारतीय खेती में अन्य अनाजों की तुलना में दालों के साथ सौतेला व्यवहार किया जाता रहा है। महंगी दालों ने आम आदमी की थाली से दाल को तकरीबन दूर ही कर दिया था लेकिन मोदी की कोशिशों से अब आम आदमी की थाली में दालें भरपूर मात्रा आ गई हैं। मोदी सरकार द्वारा दलहनी फसलों के घरेलू उत्पादन को बढ़ाने के प्रयासों का ही नतीजा है कि 2015-16 में जहां 163 लाख टन दालों का उत्पादन हुआ था, वहीं दो साल बाद 2017-18 में यह बढ़कर 239.5 लाख टन हो गया। इससे दालों का आयात तेजी से कम हुआ।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दालों के महत्व को देखते हुए इसके उपयोग को प्रोत्साहन देने के लिये अभियान चला रखा है। ‘दाल रोटी खाओ-प्रभु के गुण गाओ लोकोक्ति से स्पष्ट है कि दालें सम्पूर्ण भोजन के रूप में हमारी जीवन संस्कृति एवं समृद्ध खानपान में शामिल रही हैं। इतना ही नहीं, देश के अलग-अलग भू-भागों में दालों की विभिन्नताओं के साथ-साथ उनके उपयोग की भी विशिष्ट प्रकृति रही है जबकि भारतीय खेती की बदहाली की एक बड़ी वजह एकांगी कृषि विकास नीतियां रही हैं। वोट बैंक की राजनीति के कारण सरकारों ने गेहूं, धान, गन्ना, कपास जैसी चुनिंदा फसलों के अलावा दूसरी फसलों पर ध्यान ही नहीं दिया। इसका सर्वाधिक दुष्प्रभाव दलहनी व तिलहनी फसलों पर पड़ा। घरेलू उत्पादन में बढ़ोत्तरी न होने का नतीजा यह हुआ कि दालों व खाद्य तेल का आयात तेजी से बढ़ा।
दाले भारतीय भोजन की थाली का सौन्दर्य एवं स्वाद रही है। न केवल भारत बल्कि दुनिया भर की सांस्कृतिक परंपराओं और व्यंजनों में दालें गहराई से अंतर्निहित हैं। राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उड़द व छोले, पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार व बंगाल में अरहर तथा महाराष्ट्र एवं दक्षिणी राज्यों में मसूर दाल का इस्तेमाल विभिन्न व्यंजनों में किया जाता है। दालों का उपयोग विभिन्न रूपों में समूचे देश में होता है। देश भर में उत्पादित होने वाली दालों में 44.51 फीसदी हिस्सा चने का है। वहीं अरहर 16.84 प्रतिशत, उड़द 14.1 प्रतिशत, मूंग 7.96 प्रतिशत, मसूर 6.38 प्रतिशत तथा शेष दालों की 10.18 फीसदी पैदावार होती है।
इसके बावजूद हमारे आहार में दालों की उपलब्धता कम होना विचारणीय है। पर्यावरणीय लाभों की दृष्टि से दालों की पैदावार एवं उपयोग आधुनिक खानपान का मुख्य हिस्सा होना चाहिए क्योंकि दालों के नाइट्रोजन-स्थिरीकरण गुण मिट्टी की उर्वरता में सुधार करते हैं, जो खेत की उत्पादकता को बढ़ाते हैं। इंटरक्रॉपिंग और कवर फसलों के लिए दालों का उपयोग करके, हानिकारक कीटों और बीमारियों को दूर रखते हुए, किसान खेत और मिट्टी की जैव विविधता को भी बढ़ावा दे सकते हैं। इसके अलावा, मिट्टी में कृत्रिम रूप से नाइट्रोजन डालने के लिए उपयोग किए जाने वाले सिंथेटिक उर्वरकों पर निर्भरता को कम करके दालें जलवायु परिवर्तन शमन में योगदान दे सकती हैं क्योंकि इन उर्वरकों के प्रयोग के दौरान ग्रीनहाउस गैसें निकलती हैं और इनका अत्यधिक उपयोग पर्यावरण के लिए हानिकारक हो सकता है।
दालें स्वास्थ्य की दृष्टि से सुरक्षित है। दालों में फाइबर, विटामिन एवं सूक्ष्म तत्व प्रचुर मात्रा में होते हैं। वसा कम होने के कारण ग्लूटेन मुक्त तो हैं ही इनमें आयरन की अधिक मात्रा भी होती है। इसीलिए विभिन्न रोगियों, हृदय व शुगर के मरीजों को भोजन में दालों को शामिल करने की अनुशंसा की जाती है। शाकाहारी भोजन में दालें प्रोटीन का मुख्य स्रोत हैं। प्रोटीन, फाइबर, विटामिन और खनिजों से भरपूर, उल्लेखनीय पोषण प्रोफ़ाइल के बावजूद दालों को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है। बदलते दौर में खास तौर से बढ़ते फास्ट फूड के प्रचलन के दौर में युवा पीढ़ी को संतुलित भोजन तथा खान-पान में दालों के महत्त्व को समझाया जाना चाहिए।
-ललित गर्ग
-ललित गर्ग