जो शरीरों में जीवात्माओं को भेजने वाला और बल देने वाला है, जिसकी सभी मनुष्य उपासना करते हैं और जिसके उत्कृष्ट शासन को सब देव (सूर्यादि लोक) भी मानते हैं। जिसकी शरणवत छाया मोक्ष दिलाने वाली है, उसकी शरण न लेना मृत्यु के समान है। उस सुख स्वरूप ईश्वर की हम उपासना सदा किया करे।
ईश्वर ज्ञान स्वरूप है। हमारे पास जो ज्ञान है उसका स्रोत भी ईश्वर है। श्रद्धा से की गई उपासना प्रार्थना हमारे भीतर ज्ञान का प्रकाश फैलाती है।
ईश्वर के ध्यान से हमारी बुद्धि पवित्र बनती है, उससे विवेक बढ़ता है। विवेक होने से सत-असत और धर्म-अधर्म की पहचान हो जाती है, जिससे हम कल्याण का मार्ग सरलता से चुन सकते हैं इसके विपरीत बुद्धि जब अविवेक रूपी दलदल में फंस जाती है, तब वह ठीक पथ प्रदर्शन नहीं कर सकती, इसलिए अविवेक को दूर कर अपने मन और बुद्धि को स्थिर रखे। जब बुद्धि परमात्मा के सच्चे स्वरूप में अचल और स्थिर होकर ठहर जायेगी, तब योग को प्राप्त हो मुक्ति का द्वार खुल जायेगा।