वाराणसी। श्री काशी विश्वनाथ की नगरी में नाथों के नाथ भगवान जगन्नाथ भक्तों के प्रेम में अत्यधिक स्नान (जलाभिषेक) से बीमार पड़ गये। भगवान जगन्नाथ अब प्रतीक रूप से एक पखवाड़ा तक विश्राम कर काढ़ा का भोग पीकर स्वस्थ्य होंगे।
धर्म नगरी काशी की सैकड़ों साल पुरानी परम्परा में ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि पर शनिवार को अस्सी स्थित जगन्नाथ मंदिर में जलाभिषेक का आयोजन किया गया। सुबह तड़के लगभग 05.15 बजे भगवान जगन्नाथ, भइया बलभद्र व बहन सुभद्रा जी की काष्ठ प्रतिमाओं को मंदिर के छत पर पहुंचाया गया। यहां छत के उत्तर पूर्व स्थित स्नान वेदी पर प्रतिमाओं को विधिवत विराजमान करा श्रृंगार किया गया।
इसके उपरांत मुख्य ट्रस्टी आलोक शापुरी और उनके परिजनों ने मंदिर के पुजारी पं.राधेश्याम पांडेय की मौजूदगी में गंगाजल से भगवान के विग्रह को स्नान कराकर जलयात्रा शुरू की। पंच पल्लव मिश्रित गंगा जल के 108 मटकों से विग्रहों के जलाभिषेक के बाद कतार बद्ध भक्तों ने अपने हाथों से भगवान को गंगाजल से स्नान कराया। और भगवान को मिष्ठान, फल-फूल अर्पित कर विधि विधान से पूजन अर्चन किया। भगवान भी भक्तों के श्रद्धारूपी प्रेम में जमकर स्नान करते रहे। यह सिलसिला रात 10 बजे तक चलेगा। इसके बाद भगवान के विग्रहों को पुन: मंदिर के गर्भगृह में लाया जाएगा। जहां अत्यधिक स्नान के कारण भगवान प्रतीक रूप से बीमार पड़ जाएंगे।
मंदिर के पुजारी के अनुसार भगवान एक पखवारे तक भक्तों को दर्शन नहीं देंगे। रविवार से भगवान को काढ़े का भोग लगाया जाएगा। प्रभु के प्रकट होने पर मंगला आरती स्तुति, भजन के साथ ही श्री विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ होगा। इसके बाद आठ बजे नैवेद्य स्वरूप परवल का रस दिया जाएगा। एक पखवाड़े के बाद स्वस्थ होने के बाद भगवान श्रद्धालुओं को दर्शन देंगे। 06 जुलाई को मंदिर से भगवान जगन्नाथ की डोली यात्रा निकाली जाएगी। डोली यात्रा गाजे-बाजे के साथ अस्सी से निकलकर दुर्गाकुंड, नवाबगंज, राममंदिर, कश्मीरीगंज, खोजवां, शुंकुलधारा, बैजनत्था, कमच्छा से पंडित बेनीराम बाग, शापुरी भवन के लिए प्रस्थान करेगी। इसी के साथ सात जुलाई से काशी का विश्व विख्यात रथयात्रा मेला शुरू हो जाएगा जो नौ जुलाई तक चलेगा।
गौरतलब है कि वाराणसी की सैकड़ों साल पुरानी परंपरा का निर्वह्न करने श्रद्धालु भोर से ही अस्सी स्थित जगन्नाथ मंदिर में जुटने लगे। भक्तों ने अपने हाथों से प्रभु जगन्नाथ को रच रच कर गंगाजल से स्नान कराया। माना जाता है कि भक्तों के प्यार में भगवान इतना स्नान कर लेते हैं कि वह बीमार पड़ जाते हैं।