नयी दिल्ली। जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने उत्तर प्रदेश में कांवड़ यात्रा के मार्ग पर ढाबों, रेस्टोंरेंट और खाने-पीने की दुकानों के मालिक आदि के नाम स्पष्ट करने वाले आदेश को ‘धर्म की आड़ में राजनीति’ का खेल करार देते हुये आशंका जतायी है कि इससे देश विरोधी तत्वों को लाभ उठाने का अवसर मिल सकता है।
मौलाना मदनी ने कहा कि वह इस निर्देश की संवैधानिकता को चुनौती देने के विषय में कानूनी सलाह लेने जा रहे हैं।
मौलाना मदनी ने शनिवार को जारी बयान में कहा कि राज्य सरकार के आदेश के कारण प्रदेश में साम्प्रदायिक सौहार्द्र के वातावरण को गम्भीर क्षति पहुंच सकती है। उन्होंने इस आदेश को नागरिकों के मूल अधिकारों का उल्लंघन भी बताया है।
जमीयत उलमा-ए-हिंद ने इस मसले पर विचार-विमर्श के लिये रविवार को अपनी कानूनी टीम की एक बैठक बुलाने की घोषणा की है और कहा है कि वह इस आदेश के कानूनी एवं संवैधानिक पहलू को चुनौती देने पर विचार कर रही है।
उन्होंने कहा कि पहले यह आदेश केवल मुजफ़्फ़र नगर प्रशासन ने जारी किया था, लेकिन अब उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से सभी कांवड़ यात्रा मार्गों के लिये यह आदेश जारी हो गया है। इसके दायरे में फल और सब्जी विक्रेताओं को भी लाया गया है।
मौलाना मदनी ने कहा कि देश के सभी नागरिकों को संविधान में इस बात की पूरी आजादी दी गयी है कि वे जो चाहें पहनें, जो चाहें खायें, उनकी व्यक्तिगत पसंद में कोई बाधा नहीं डालेगा, क्योंकि यह नागरिकों के मूल अधिकारों का मामला है। संविधान में स्पष्ट शब्दों में कहा गया है कि देश के किसी नागरिक के साथ उसके धर्म, रंग और जाति के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जायेगा और हर नागरिक के साथ समान व्यवहार किया जायेगा। उन्होंने आरोप लगाया कि लेकिन पिछले कुछ वर्षों से शासन-प्रशासन का जो व्यवहार सामने आया है, उसमें धर्म के आधार पर भेदभाव आम बात हो गयी है।
उन्होंने कहा, “हम सभी धर्मों का आदर करते हैं और दुनिया का कोई धर्म यह नहीं कहता कि आप दूसरे धर्म के मानने वालों से नफ़रत करें। यह कोई पहली कांवड़ यात्रा नहीं है, लम्बे समय से यह यात्रा निकलती आ रही है लेकिन पहले कभी ऐसा नहीं हुआ कि किसी नागरिक को अपनी धार्मिक पहचान बताने के लिये विवश किया गया हो, बल्कि यात्रा के दौरान आम तौर पर देखा गया है कि मुसलमान जगह-जगह कांवड़ यात्रियों के लिए पानी और लंगर का आयाेजन करते आये हैं।”