Sunday, November 24, 2024

बच्चों के लिए घातक है गेमिंग की लत

स्कूली बच्चों में ऑनलाइन गेम्स की लत स्वयं बच्चों के लिए व उनके परिवार के लिए बहुत ही घातक सिद्ध हो रही है। सच तो यह है कि आज के समय में जब हम संचार क्रांति के युग में सांस ले रहे हैं ,तब घंटों ऑनलाइन गेमिंग की लत बच्चों को मानसिक रूप से बीमार बना रही है। दरअसल, कोरोना महामारी के बाद से बच्चों को मोबाइल यूज करने की ज्यादा लत लग गयी है। कहना ग़लत नहीं होगा कि कोरोना महामारी(कोविड-19) के दौरान हुए लॉकडाउन की वजह से बच्चों की कोचिंग व स्कूल की ऑनलाइन क्लासेज लगने लगी और बच्चों को एंड्रॉयड मोबाइल फोन या टैबलेट या कंप्यूटर देना माता पिता और अभिभावकों के लिए मजबूरी बन गया था। बच्चों को मोबाइल मिलने की वजह से वे ऑनलाइन गेमिंग के आदि हो गए और मानसिक तौर पर बीमार होने लगे हैं। एक्सपर्ट्स का मानना है कि ज्यादा समय तक ऑनलाइन गेम खेलने वाले बच्चों के व्यवहार में उग्रता आ जाती है, जिसके बाद उनमें तनाव बढऩे लगता है। कुछ मामलों में उनको दौरे तक भी पडऩे लगते हैं। आज मोबाइल गेम्स के चक्कर में बच्चे अभिभावकों का कहना तक नहीं मानते हैं, क्यों कि आनलाइन गेम्स उन्हें आनंद व खुशी की अनुभूति प्रदान करते हैं। मोबाइल छीनने पर वे उग्र, कभी कभी तो हिंसक भी हो जाते हैं। आनलाइन गेम्स खेलने से बच्चे जहां एक ओर पढ़ाई से दूर होने लगे हैं वहीं पर दूसरी ओर इससे उनकी आंखों, दिमाग पर भी प्रभाव पड़ता है। वास्तव में ऑनलाइन गेम्स खेलने के कारण बच्चों की आंखों की रौशनी कम होना, मोटापा, स्लीपिंग डिस ऑर्डर डिप्रेशन, अग्रेसिवनेस, एकाग्रता में कमी जैसी समस्याएं पैदा होती हैं। बहरहाल, यदि हम यहां आंकड़ों की बात करें तो एक सर्वे के मुताबिक, भारत के 40 प्रतिशत अभिभावकों ने माना था कि उनके बच्चे सोशल मीडिया इस्तेमाल करने, वीडियोज देखने और ऑनलाइन गेम खेलने के आदि हैं। इन बच्चों की उम्र 9 साल से 17 साल के बीच है। इस सर्वे में शामिल 49 प्रतिशत अभिभावक मानते हैं कि उनके 9 साल से 13 साल के आयुवर्ग के बच्चे रोजाना 3 घंटे से ज्यादा समय इंटरनेट पर बिताते हैं। वहीं, 47 प्रतिशत अभिभावकों का मानना था कि उनके बच्चे को ऑनलाइन गेमिंग, सोशल मीडिया और शॉर्ट वीडियोज देखने की बुरी लत लग गई है। सर्वे में भाग लेने वाले 62 प्रतिशत अभिभावकों का मानना है कि उनके 13 साल से 17 साल के बच्चे प्रतिदिन 3 घंटे से ज्यादा समय स्मार्टफोन पर बिताते हैं। हाल ही में महाराष्ट्र के पुणे जिले से एक बहुत ही चौंकाने व दिल दहलाने वाली खबर सामने आई है। यहां एक पन्द्रह वर्षीय बालक ने एक बहुमंजिला इमारत की चौदहवीं मंजिल से कूदकर अपनी जान दे दी। प्रारंभिक जांच में यह पता चला है कि नाबालिग ने कथित तौर पर ब्लूव्हेल चैलेंज गेम की लत के चलते यह खतरनाक कदम उठाया है। मीडिया के हवाले से खबर आई है कि जिस बच्चे ने चौदहवीं मंजिल से कूदकर अपनी जान दे दी वह ऑनलाइन गेम खेलने का आदी था। यह भी बताया जा रहा है कि मृतक लड़का पढ़ाई में बेहद अच्छा था और हाल ही में उसने अच्छे अंकों के साथ 9 वीं कक्षा पास की थी। पिछले कुछ महीनों से उसे ऑनलाइन मोबाइल गेम खेलने की लत लग गई थी। आज इंटरनेट व आनलाइन का जमाना है। बच्चे आनलाइन गेम्स के चक्कर में फंसकर अपनी जान से हाथ धो रहे हैं। बच्चों का मन बहुत ही कोमल होता है और वे इन आनलाइन गेम्स के चक्कर में फंसकर ऐसे खतरनाक कदम उठा रहे हैं, जिसके बारे में सोचकर भी किसी का दिल कांप उठता है। दरअसल,आज विभिन्न प्लेटफार्म पर ऐसे आनलाइन गेम्स उपलब्ध हैं और बच्चे इनका आसानी से शिकार बन जाते हैं। वे खेल के मैदानों में न जाकर इंटरनेट के माध्यम से वर्चुअल गेम्स में रचे-बसे रहते हैं। सोशल नेटवर्किंग साइट्स, इंटरनेट, एंड्रायड फोन ने जहां हमें बहुत सी सुविधाएं प्रदान कीं हैं, वहीं दूसरी ओर इनके बहुत से खतरे भी हैं। आज न तो अभिभावकों के पास अपने बच्चों के लिए समय बचा है और न ही बच्चों के पास अभिभावकों के लिए समय है। जिंदगी की आपाधापी में हम बच्चों को खेल के मैदानों से नहीं जोड़ पा रहे हैं और न ही आज पहले के जमाने की भांति दादी-नानी की कहानियां ही बची हैं।
परिवार भी आज संयुक्त नहीं रहे हैं अथवा कम ही परिवार हैं जो संयुक्त बचे हैं और इसका खामियाजा कहीं न कहीं हम सभी को भुगतना पड़ रहा है। एकल परिवार में हम आपसी संवाद कम ही करते हैं और स्वयं में ही व्यस्त रहते हैं। किसी को भी आज देखिए, सब सोशल नेटवर्किंग साइट्स व्हाट्स एप, फेसबुक, इंस्टाग्राम यू-ट्यूब, ट्विटर, गेम्स, इंटरनेट पर भी व्यस्त नजर आते हैं। इस वर्चुअल दुनिया में हम रम-बस से गये हैं और हमें हमारे आसपास के वातावरण तक का भी ध्यान नहीं रहता है कि कहां, क्या और कैसे हो रहा है ? बच्चे अपने में मस्त रहते हैं और हम अभिभावक अपने में। आज हमें यह चाहिए कि हम अपने बच्चों का ध्यान रखें कि वे कब, कहां क्या कर रहे हैं और क्या नहीं। सच तो यह है कि पुणे में हुई घटना की और कहीं पर भी पुनरावृत्ति न होने पाएं इसके लिए हमें यह चाहिए कि हम अपने बच्चों को ऑनलाइन गेमिंग की लत से बचाने के लिए उनके रोज के खेल का समय सीमित करें, हमें यह चाहिए कि हम गेमिंग डिवाइस को सोने से पहले बेडरूम से हटा दें, और बेकार ऐप्स को डिलीट कर दें और बच्चों से स्ट्रेस-फ्री एक्टिविटीज करवाएं। बच्चों को खेल के मैदानों से जोड़ें, उनके साथ समय समय पर संवाद करें, उनकी समस्याओं को जानें, समझें, उन्हें समझाएं,उनकी समस्याओं का मिल बैठकर समाधान करें। आज विभिन्न सेलिब्रिटी, क्रिकेटर, बड़े बड़े अभिनेता, अभिनेत्री , फिल्मी दुनिया के सितारे आनलाइन जुए के विभिन्न एप्स का प्रचार करते नजर आते हैं। भारी भरकर प्रचार से आनलाइन गेम्स की लोकप्रियता लगातार बढ़ती चली जा रही है।
आज हमें हर कहीं ऐसे विज्ञापन ज़रूर देखने को मिल जाएंगे जिसमें ये प्रचार किया जाता है, घर बैठे लाखों, करोड़ों रुपये कमाएं। बच्चे इन सबके बारे में समझ नहीं पाते हैं, क्यों कि समयाभाव के कारण हम अभिभावक बच्चों पर पर्याप्त ध्यान नहीं रख पाते हैं और बच्चों को गाइडेंस का अभाव रहता है। यह बहुत ही चिंताजनक है कि आज कम कीमत पर मोबाइल फ़ोन और कनेक्टिविटी मौजूद हैं और इसकी वजह से ऑनलाइन जुए की लोकप्रियता न केवल भारत में बल्कि पूरी दुनिया में फ़ैल रही है। वास्तव में विडियो गेम्स से जहां एक ओर हमारा धन व समय बर्बाद होता है वहीं दूसरी ओर इससे व्यक्तिगत, सामाजिक, शैक्षिक और व्यावसायिक जिम्मेदारियों सहित दैनिक कामकाज पर भी बहुत ही नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। वास्तव में अभिभावकों, माता पिता को आनलाइन गेम्स के जोखिमों के बारे में जानना चाहिए और बच्चों को इसके प्रति आगाह करना चाहिए। हमें अपने बच्चों को जानकारी देनी चाहिए कि ये गेम दूसरे लोगों के साथ ऑनलाइन खेले जाते हैं और खास तौर पर नशे की लत वाले होते हैं क्योंकि इनका कोई अंत नहीं होता। आज प्रतिस्पर्धा का युग है और वीडियो गेम डिज़ाइनर, विभिन्न कंपनियां, मुनाफ़ा कमाने की कोशिश करने वाले किसी भी अन्य व्यक्ति की तरह, हमेशा ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को अपना गेम खेलने के लिए प्रेरित करने के तरीके खोजते रहते हैं। वे इन गेम्स को इतना चुनौतीपूर्ण बनाकर ऐसा करते हैं कि कोई भी बार-बार इन्हें खेलने के लिए आते रहें। और हम या हमारे बच्चे या कोई भी इनका अत्यंत आसानी से शिकार बन जाते हैं, यह बहुत ही चिंताजनक है।
वैसे 18 साल से कम बच्चों के लिए साइबर कानून बनाए गए हैं। इसके अनुसार 13 साल से कम उम्र के बच्चे सोशल मीडिया में शामिल नहीं हो सकते।
इतना ही नहीं,16 साल से कम उम्र के बच्चे माता-पिता और अभिभावकों के संरक्षण में ही सोशल मीडिया पर सक्रिय हो सकते हैं। गेमिंग में पैसे का लेन-देन और कारोबार होता है, इसलिए इंडियन कांट्रेक्ट एक्ट, मिजोरिटी एक्ट और डेटा सुरक्षा के प्रस्तावित बिल के अनुसार 18 साल से ऊपर की उम्र के बच्चे ही वैध एग्रीमेंट कर सकते हैं। इसलिए गेमिंग कम्पनियों का 18 साल से कम उम्र के बच्चों के साथ कारोबार ग़लत और ग़ैर-क़ानूनी है। बहरहाल,आनलाइन गेम्स देश का भविष्य खराब कर रहे हैं। धन व समय तो बर्बाद हो ही रहा है। आज युवाओं की जिंदगी भी दांव पर लगी है। इसलिए अभिभावकों को यह चाहिए कि वह अपने बच्चों की गतिविधियों पर पर्याप्त ध्यान रखें, उन्हें ज्यादा से ज्यादा समय दें, उनकी समस्याओं को सुनें, उन्हें खेल के मैदानों से अधिकाधिक जोड़े। अधिकाधिक किताबें पढऩे के लिए प्रेरित करें। किताबें सबसे अच्छी मित्र होती हैं, यह बच्चों को बताया जाए। बच्चों को दादा-दादी नाना-नानी, अभिभावकों से कहानियां,किस्से सुनाए जाएं। बच्चों के मनोरंजन की पर्याप्त व्यवस्था हो। बच्चे क्रिकेट , वॉलीबॉल, फुटबॉल, खो-खो जैसे आउटडोर गेम खेल सकते हैं या स्विमिंग, जिम, पेंटिंग और कुकिंग आदि भी कर सकते हैं। बच्चों को जो काम अच्छा लगता हो मतलब कुछ क्रिएटिव वो कर सकते हैं। ये एक्टिविटी बच्चों को ऑनलाइन गेमिंग से अपना ध्यान हटाने में मदद करेंगी। बच्चों को चिडिय़ाघर, म्यूजियम, किसी ऐतिहासिक, धार्मिक, सांस्कृतिक व किसी पर्यटन स्थल की सैर कराई जा सकती है, उन्हें पिकनिक पर ले जाया जा सकता है। परिवार के साथ टाइम बिता कर गेमिंग लत को छुड़ाया जा सकता है।
किसी मनोवैज्ञानिक की सहायता से इस संबंध (गेमिंग छुड़ाने) में मदद ली जा सकती है। बच्चों के साथ अभिभावकों को क्वालिटी टाइम स्पेंड करना चाहिए। इसके अलावा बच्चों को आनलाइन गेम्स के साइड इफेक्ट्स के बारे में जानकारी दी जानी चाहिए। फ्री टाइम का सदुपयोग किया जाना चाहिए।
इलैक्ट्रोनिक गैजेट्स को बच्चों से दूर रखा जाना चाहिए। पैरेंट्स को बच्चों के साथ अपनी बैंक डिटेल्स साझा करने से बचना चाहिए। बच्चों को कुछ हॉबी फॉलो करने की सलाह देनी चाहिए।
अभिभावकों को यह चाहिए कि वे कभी भी अपने बच्चों को अकेलापन महसूस नहीं होने दें। वास्तव में कार्य, घर के अंदर जीवन, बाहर के मनोरंजन तथा सामाजिक व्यस्तताओं के बीच संतुलन कायम रखना सबसे महत्वपूर्ण काम है। इसके अलावा प्रति सप्ताह चार घंटों के डिजिटल डिटॉक्स को जरूर अपनाना चाहिए। बच्चे इस देश का भविष्य हैं, इसलिए अभिभावकों को यह चाहिए कि वे अपने बच्चों को पर्याप्त समय दें, उनमें संस्कृति संस्कार विकसित करें, अच्छी शिक्षा दें। हमारी थोड़ी सी जागरुकता देश का भविष्य बचा सकती है।
सुनील कुमार महला – विनायक फीचर्स

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