श्री कृष्ण केवल भगवान ही नहीं है, बल्कि हर युग में हर किसी के मार्गदर्शक भी हैं। निर्भर आप पर करता है कि आप उन्हें किस रूप में देखते हैं। आदमी का जीवन पग-पग पर महाभारत के युद्ध का ही दूसरा नाम है। बस आपको कर्मशील बने रहने होगा। यदि कि कर्तव्यविमूढ़ होकर इस युद्ध के मैदान में बैठ गये आपको अर्जुन की भांति श्री कृष्ण जैसे मार्गदर्शक की आवश्यकता होगी। जब आप चुनौतियों के सागर में उतरते हैं तो फिर कई प्रश्न आपके मन मस्तिष्क पर छा जाते हैं। आप कत्र्तव्यों से चूकने लगते हैं। अपने कत्र्तव्यों के प्रति सजग रहना और इन्हें निभाने के लिए कर्म करना यही जीवन का सार होना चाहिए। श्री कृष्ण ने अर्जुन को यही बात एक उपदेश के रूप में समझाई थी। एक ही कुटम्ब में अपने-अपने अधिकारों के लिए तहर-तरह के षडयंत्र रचे गये। ऐसे में श्री कृष्ण ने गाइड बनकर नीति और न्याय को सामने रखकर अर्जुन को स्पष्ट कर दिया कि किसी एक को चुन लो। गीता का उपदेश आपको कर्म के लिए प्रेरित करता है। लक्ष्य निर्धारित करने के लिए प्रेरित करता है, जिसने गांडीव उठा लिया, वही अर्जुन और जिसने कुछ नहीं किया, लक्ष्य निर्धारित नहीं किया तो वह गया काम से। जीवन के कुरूक्षेत्र में उतरने से पहले अपनी क्षमताओं को आंक कर तदनुसार अपने कर्तव्यों पर आरूढ हो जाना चाहिए, जो कर्मशील होगा, जिसे अपनी क्षमता पर विश्वास होगा वह इस युद्ध में निश्चय ही सफल होकर निकलेगा।