व्यक्ति प्रभु भक्ति के लिए भी अनुकूल परिस्थितियों की प्रतीक्षा करता है कि मेरा अमुक कार्य पूरा हो जाये। मैं सन्तान के लिए मकान बना दूं। व्यापार तथा व्यवसाय का प्रबन्ध कर दूं, उनके विवाह आदि के कार्य से निवृत्त होकर निश्चिंत होकर भगवान का भजन करूंगा, किन्तु वह पुत्रों के पश्चात पौत्रों के लिए योजना बनाने लगता है उसके कार्य कभी समाप्त होते ही नहीं। सोचते-सोचते उसका जीवन ही समाप्त हो जाता है, जिसे अपने लोक परलोक के संवारने की थोड़ी सी भी व्यग्रता होगी तो प्रभु की भक्ति तो वह अपने सांसारिक कर्तव्यों को पूरा करते हुए भी करता रहेगा। यदि वह अपनी जीवन रूपी गाड़ी को प्रारब्ध रूपी मार्ग पर परमात्मा रूपी सारथी के हाथ सौंपकर निर्भय और निश्चिंत हो जाये और दृढ़ निश्चय करें कि जो होना था वही हुआ, जो होना चाहिए वही हो रहा है, जो होना होगा वही होगा। निश्चय के साथ यथायोग्य विचार करें, विचार करने पर अन्तर्रात्मा से जो प्रेरणा मिले उसके अनुसार पुरूषार्थ करे और उस पुरूषार्थ का जो परिणाम निकले उसे प्रभु इच्छा तथा प्रारब्ध का फल समझकर संतोष करें।