परोपकार की भावना व्यक्ति में बहुत बड़ा गुण है। परोपकार के पुनीत कार्य में उसे कुछ न कुछ त्याग तो करना ही होगा। बहुमूल्य समय के साथ कुछ धन भी व्यय करना पड़ेगा। फिर भी कुछ लोग उसे स्वार्थी कह सकते हैं। ‘बिना स्वार्थ के कोई किसी की सहायता नहीं करता इस व्यक्ति का भी कोई स्वार्थ तो अवश्य होगा ऐसे व्यंग्य बाण भी सहने पड़ते हैं, परन्तु जिसने परोपकार को अपने जीवन का ध्येय बना लिया, वह ऐसी बातों से विचलित नहीं होता। फलदार वृक्ष को देखिए, लोग उस पर पत्थर मारते हैं, डंडे बरसाते है, किन्तु बदले में वह फल देता है। संसार की भलाई सोचकर ही आम की गुठली भूमि में दफन होती है। मिट्टी-पानी तथा खाद की खुराक खाकर मोटी होने के लिए नहीं, बल्कि एक वृक्ष बनकर सारी दुनिया को आम खिलाने के लिए। जब वो सबको फल देगा तो पानी, हवा, प्रकाश और खाद का भोजन लेने का अधिकार तो उसका बनता ही है। इसमें भी उसका कोई स्वार्थ देख सकता है और दिनोंदिन बढ़ते पौधे को ही द्वेषवश उखाड़कर फेंक सकता है। इससे उस गुठली और वृक्ष की ही हानि नहीं करता, बल्कि स्वयं भी आम खाने से वंचित ही रहता है। इसी प्रकार कुछ स्वार्थी लोग परोपकारी को अपनी राह का रोड़ा समझ उसके प्राण ते लेने पर उतारू हो सकते हैं, किन्तु वे उस परोपकारी तथा उसकी सेवा से लाभ उठाने वाले की ही हानि नहीं करता अपनी भी करता है। ऐसी पुनीत आत्मा उस स्वार्थी के भी कभी न कभी काम आ सकती है। चोट खाकर भी जैसे आम का वृक्ष फल देता रहता है, ऐसे ही परोपकारी भी अपना मार्ग नहीं त्यागते और अपने द्वारा किये गये सेवा कार्यों को ही परमात्मा की भक्ति मानते हैं।