सहारनपुर। आम की फसल को भुनगा कीट एवं खर्रा रोग द्वारा मजंरियों, पुष्पक्रम, कोमल पत्तियों एवं डंठलों व छोटे फलों को सर्वाधिक क्षति पहुंचाई जाती है। संयुक्त निदेशक औद्यानिक प्रयोग एवं प्रशिक्षण केन्द्र सुरेश कुमार ने जानकारी देते हुए बताया कि भुनगा कीट नुकीलें आकार में जो पीछे की तरफ पतले आगे की तरफ चोड़े होते है।
इनके बच्चे निम्फ एवं वयस्क कीट मुलायम पत्तियों, पुष्पक्रमों तथा छोटे फलों का रस चूसते है। जिससे बौर एवं फूल व फल सूखकर गिर जाते है, साथ ही साथ मधुस्राव विसर्जित करते है, फलस्वरूप फलों एवं पत्तियों पर काली फफूंदी उग आती है, जिससे प्रकाश संश्लेषण क्रिया प्रभावित होती है।
खर्रा रोग में मंजरियों, पुष्पक्रमों एवं छोटे फलों व कोमल टहनियों पर सफेद फफूंद के चूर्ण पाउडर के रूप में प्रकट होते है, पत्तियों पर बैंगनी तथा भूरे धब्बे दिखाई देते है। प्रभावित बौर एवं छोटे फल भूरे एवं काले पड़कर झड़ जाते है। आम में बौर एवं छोटे फलों की अवस्था में यदि वातावरण में नमी एवं तापक्रम अधिक हो तो समसामयिक कीट जैसे भुनगा एवं खर्रा रोग आदि के प्रकोप की संभावना रहती है।
बागवान भाईयों को आम की गुणवत्तायुक्त उत्पादन सुनिश्चित करने हेतु समय-समय पर बागों का निरीक्षण कर इन समसामायिक कीट एवं रोगों का प्रबन्धन किया जाना नितान्त आवश्यक है। यदि बाग में भुनगा कीट (चेपा) एवं खर्रा रोग (पाउड्री मिल्डयू) का प्रकोप के लक्षण दिखाई देते है तो ऐसी स्थिति में डायमेथोएट 02 मिली0 अथवा थायोमेथोक्सम 0.3 ग्राम अथवा इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस एल 0.3 मिली0 तथा खर्रा रोग के लिए हेक्साकोनाजोल 01 मिली0 या डाइनोकैप 01 मिली0 या ट्राईडेमार्क 01 मिली0 प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिडकाव किया जाये।
बागवानों को सलाह दी गयी कि कीटनाशक, फफूंदनाशक दवाओं का छिडकाव बदल-बदल कर करना चाहिए तथा बिना किसी संस्तुत के कई कीटनाशक, फंफूदनाशक दवाओं के मिश्रण का छिडकाव कदापि न किया जाये।