प्रत्येक मनुष्य के जीवन में ऐसी स्थिति कभी न कभी अवश्य ही आती है। जब वह निराश हो जाता है। निराशा उसके जीवन पर इस तरह हावी हो जाती है कि प्रिय कार्यों को भी नहीं करना चाहता है। ऐसी मन:स्थिति का प्रभाव शरीर पर भी पड़ता है। निराश व्यक्ति जीवन को बोझ की भांति ढोते हैं। उन्हें लगता है कि वे इस दुनियां में अकेले हैं। निराश लोगों का मन किसी कार्य में नहीं लगता है।
कई बार निराशा व्यक्ति को आत्महत्या करने को प्रेरित करती है और व्यक्ति अपने अमूल्य जीवन को समाप्त करने का फैसला कर बैठता है।
वास्तव में मनुष्य एक संवेदनशील प्राणी है। वह जीवन के किसी न किसी मोड़ पर स्वयं को हारा हुआ महसूस करता है। भावनाओं के आहत होते ही वह निराश हो जाता है।
किसी व्यक्ति को नौकरी के लिए कई प्रयास करने पर भी निराशा मिलती है। विद्यार्थी को आशानुसार परीक्षा परिणाम नहीं मिलने पर निराशा होने पर वह निराश हो जाता है।
प्रेम प्रसंगों में असफलता से कई लोग इतने निराश हो जाते हैं कि जीवन में उन्हें कुछ भी आकर्षण उन्हें नजर नहीं आता है। दिनोंदिन बिगड़ती मनोदशा के परिणाम स्वरूप आत्महत्या भी कर लेते हैं।
अधिकतर देखने में आता है कि कुछ व्यक्ति सपनों की दुनियां में डूबे रहते हैं और स्वप्न को यथार्थ बनाने के लिए आवश्यक परिश्रम नहीं करते हैं। यदि मेहनत भी करते हैं तो मार्ग में आई थोड़ी सी बाधा से भी विचलित हो जाते हैं।
ऐसे में परिणाम उनकी आकांक्षाओं के अनुसार नहीं निकलता है और वे निराश हो जाते हैं।
ऐसे सभी लोग जो जिंदगी को नकारात्मक ढंग से देखने के आदी होते हैं, वे अक्सर निराश ही रहते हैं। उन्हें दुनिया स्वार्थी व जीवन नीरस व बेहद कठिन दिखता है। ये लोग जीवन की राह में आए उतार चढ़ाव से तुरंत प्रभावित होते हैं, अत: वे मनचाहा प्राप्त नहीं कर पाते हैं।
असंभव कुछ भी नहीं:-
निराश होने पर महान सेनापति नेपोलियन ने सैनिकों से कहा ‘असंभव शब्द मूर्खों के शब्द कोष में मिलता है, मेरे शब्दकोष में नहीं।
संसार में सभी महान आविष्कार व कार्य मनुष्य के अथक परिश्रम व बुद्धि के सहारे ही संभव हुए हैं।
एडिसन अलवा से एक पत्रकार ने पूछा ‘प्रयोगों के असफल होने पर आपको निराशा नहीं होती? एडिसन ने जवाब दिया, ‘निराश होकर बैठने की बजाय मैं कार्य में जुट जाना पसंद करता हूं।
महापुरूषों की जीवन गााथाएं बताती हैं कि अनेक बार असफल होने पर भी वे निराश नहीं हुए। सोचिए, किसी प्रयोग में असफल होने पर एडिसन निराश हो जाते तो क्या वे दुनिया को इतने आविष्कार उपकार दे पाते जिनके लिए आज संसार उनका ऋणी है।
निराशा से बचें:-
निराशा से स्वयं को बचाने के लिए सबसे पहले हमें अपने जीवन के लिए दृष्टिकोण की जांच करनी चाहिए।
जीवन के प्रति सदैव सकारात्मक दृष्टिकोण रखें। जीवन का एक खास लक्ष्य बनाएं और उसे पूरी निष्ठा से प्राप्त करने का प्रयास करें। जीवन में उतार-चढ़ाव के लिए स्वयं को मानसिक रूप से तैयार रखें।
किसी कार्य में असफल होने पर घबराएं नहीं और न ही अपने भाग्य का रोना रोएं। ठंडे दिमाग से अपनी गलतियों से बचने की कोशिश करें।
जब कभी निराशा हो तो ये करें:-
– आप अपने किसी निकट मित्र से मिलने चले जाएं या अपने परिवार के सदस्यों से बातचीत करें। जब भी मनोबल टूटता लगे तो किसी महापुरूष की जीवनी पढऩा शुरू कर दें। आप आसपास बाग-बगीचे में घूमने जाएं। बागवानी करें। अपने अतीत की उपलब्धियों को याद करें।
पुरस्कार लेते हुए खींची तस्वीरों को देखें। अपना अलबम देखना न भूलें। मनपसंद काम जैसे संगीत सुनना, हास्य व्यंग्य का कार्यक्रम देखना, पुस्तक पढऩा, चित्रकारी आदि कार्य करें।
– अपनी निराशाओं को डायरी में लिखकर भी आप हल्के हो सकते हैं। निराशा के साथ इससे निबटने के संभावित उपाय भी लिखें जिससे आप निराशा से उबरने को प्रेरित होंगे।
एक बात सदैव याद रखें कि अतीत की यादों में डूबे न रहें। अपने वर्तमान को सुंदर व कल्पनानुसार बनाने की कोशिश करें। वर्तमान को सही तरह से समझ का ही भविष्य को सुंदर बना सकते हैं।
-दुर्गेश्वरी शर्मा