Monday, November 25, 2024

ईवीएम है इनकी बिल्ली मौसी, वोट कहीं डालो, जीतेंगे भाजपा वाले हीः राकेश टिकैत

बिजनौर। चौधरी राकेश टिकैत ने ईवीएम पर कटाक्ष करते हुए इसे सरकार की ‘बिल्ली मौसी’ कहकर तंज कसा है, जिसका मतलब है कि चुनाव में ईवीएम पर शक जताया गया है।

उनका कहना है कि चाहे वोट कहीं भी डाला जाए, नतीजे सरकार के पक्ष में ही होते हैं। इसके अलावा, उन्होंने केंद्र सरकार की नीतियों की आलोचना करते हुए कहा कि यह राज्य सरकारों को स्वतंत्र रूप से काम करने नहीं देती। यूपी सरकार (लखनऊ) की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि अगर राज्य कुछ करने की कोशिश भी करता है, तो केंद्र (दिल्ली) से उसे रोक दिया जाता है।

टिकैत के इन बयानों से यह स्पष्ट है कि वे मौजूदा व्यवस्था और केंद्र की भूमिका पर गंभीर सवाल उठा रहे हैं, खासकर राज्य और केंद्र के बीच के संबंधों को लेकर।

बिजनौर के प्रदर्शनी मैदान में आयोजित किसान महापंचायत में भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने सरकार की नीतियों पर जमकर हमला बोला। उन्होंने कहा कि सरकार की नीतियां अधिकारियों के कलम और चेहरे से स्पष्ट होती हैं, जो किसानों के हितों के खिलाफ काम कर रही हैं। उन्होंने गन्ना किसानों की समस्याओं को उठाते हुए कहा कि सीजन शुरू होने वाला है, लेकिन अभी तक गन्ना मूल्य का बकाया भुगतान नहीं किया गया है और न ही नए गन्ना मूल्य की घोषणा की गई है। टिकैत ने किसानों के साथ इस तरह के व्यवहार को सरकार की नाकामी बताया और समय पर भुगतान की मांग की।

राकेश टिकैत ने किसान महापंचायत में बोलते हुए बिजनौर और बहराइच में जानवरों के हमलों का मुद्दा उठाया, जिसमें गुलदार और भेड़िए किसानों पर हमला कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि इन हमलों में 50 से ज्यादा किसान मारे गए हैं, और पूछा कि क्या अब किसान अपने घर-खेत छोड़कर बाहर चले जाएं? टिकैत ने इन घटनाओं के खिलाफ आंदोलन करने की बात कही और स्पष्ट किया कि यह सिर्फ शुरुआत है, बिजनौर जैसी महापंचायतें पूरे देश में आयोजित की जाएंगी।

उपचुनाव पर अपने विचार व्यक्त करते हुए टिकैत ने इसे “बीमारी” करार दिया और एक बार फिर ईवीएम पर कटाक्ष करते हुए कहा कि यह सरकार की ‘बिल्ली मौसी’ है। उन्होंने आरोप लगाया कि चाहे लोग वोट कहीं भी डालें, नतीजे हमेशा सत्ताधारी दल के पक्ष में ही जाते हैं। उन्होंने समिति चुनावों का उदाहरण देते हुए कहा कि हर जगह सत्तारूढ़ दल के लोग ही चेयरमैन बन रहे हैं, जिससे चुनाव की निष्पक्षता पर सवाल खड़े होते हैं।

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