Thursday, November 14, 2024

कनाडा में मौजूद है खालिस्तानी-जस्टिन ट्रूडो

कनाडा। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो का दोहरा चरित्र एक बार फिर सामने आया है, खासकर खालिस्तानी आतंकियों के प्रति उनकी नीतियों को लेकर। लंबे समय से उन पर और उनकी सरकार पर आरोप लगते आए हैं कि वे खालिस्तानी अलगाववादियों को पनाह देते हैं और उन्हें आतंकवादी मानने से इंकार करते हैं। साथ ही, ट्रूडो ने हमेशा भारत पर आरोप लगाया है कि वह खालिस्तानी नेताओं की हत्या की साजिश रचता है।

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हालांकि, हाल ही में ट्रूडो ने खुद यह स्वीकार किया कि कनाडा में खालिस्तानी समर्थक मौजूद हैं, लेकिन उनका कहना था कि वे सिख समुदाय का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। यह बयान भारत के रुख को सही साबित करता है, जिसमें कहा गया है कि कनाडा सरकार खालिस्तानी तत्वों को संरक्षण दे रही है।

 

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यह बयान ओटावा में हुए एक दिवाली कार्यक्रम में दिया गया, जिसमें ट्रूडो ने भारतीय प्रवासियों को संबोधित किया था। उन्होंने कहा कि कनाडा में खालिस्तान समर्थक हैं, लेकिन उनका सिख समुदाय से कोई संबंध नहीं है और न ही वे सिख समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसके साथ ही, ट्रूडो ने यह भी कहा कि कनाडा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समर्थक हिंदू भी हैं, लेकिन उनका भी हिंदू समुदाय से कोई संबंध नहीं है।

 

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इस बयान से यह स्पष्ट हो गया है कि ट्रूडो ने खालिस्तानी समर्थकों की मौजूदगी को स्वीकार किया है, लेकिन वे उन्हें सिख समुदाय का हिस्सा मानने से इनकार करते हैं। यह स्थिति कनाडा सरकार की नीति को लेकर भारत की चिंताओं को और भी मजबूत करती है, जो खालिस्तान समर्थक तत्वों को पनाह देने के आरोप लगाती रही है।

ट्रूडो की टिप्पणी खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के संदर्भ में आई है, जो भारत और कनाडा के बीच बढ़ते कूटनीतिक विवाद को और बढ़ावा दे रही है। सितंबर 2023 में, कनाडा के प्रधानमंत्री ने निज्जर की हत्या में भारतीय एजेंटों की संलिप्तता का आरोप लगाया था, जिसके बाद दोनों देशों के बीच तनाव और बढ़ गया।निज्जर, जो एक वांछित खालिस्तानी आतंकवादी था, को 18 जून 2023 को ब्रिटिश कोलंबिया के सरे शहर में एक गुरुद्वारे के बाहर गोली मारी गई थी। इस हत्या के बाद कनाडा और भारत के रिश्ते खटास में आ गए थे, और भारत ने इस आरोप को कड़े शब्दों में खारिज कर दिया। भारत सरकार ने यह भी कहा कि कनाडा सरकार ने अब तक निज्जर की हत्या में भारतीय संलिप्तता के कोई ठोस प्रमाण नहीं पेश किए हैं।
इसके बाद, कनाडा सरकार ने भारत के उच्चायुक्त पर संदेह जताया और उनकी हत्या की जांच में भारत के संदिग्ध होने के आरोप लगाए, जिससे कूटनीतिक संबंधों में और भी तनाव बढ़ा। इसके जवाब में, भारत ने कनाडा से छह राजनयिकों को निष्कासित कर दिया और ओटावा में अपने उच्चायुक्त को वापस बुला लिया। भारत के विदेश मंत्रालय ने ट्रूडो पर वोट बैंक की राजनीति करने और कनाडा की धरती पर खालिस्तानी तत्वों से निपटने में पर्याप्त कदम न उठाने का आरोप लगाया था। भारत ने बार-बार कहा कि कनाडा में रह रहे खालिस्तानी अलगाववादियों के खिलाफ कनाडा सरकार ने कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं की है, जिससे यह समस्या और जटिल हो गई है।इस पूरे विवाद के बीच ट्रूडो का यह बयान कि खालिस्तान समर्थक कनाडा में सिख समुदाय का प्रतिनिधित्व नहीं करते, एक तरफ जहां भारत के दृष्टिकोण को समर्थन प्रदान करता है, वहीं दूसरी ओर यह कनाडा सरकार की नीतियों और खालिस्तानी तत्वों के प्रति उसके लचीले रवैये को लेकर सवाल उठाता है।
6 नवंबर को, कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने हाउस ऑफ कॉमन्स में यह बयान दिया कि हिंसा भड़काने वाले लोग किसी भी रूप में कनाडा में सिखों या हिंदुओं का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। यह टिप्पणी उस घटना के संदर्भ में आई थी, जब ब्रैम्पटन में हिंदू सभा मंदिर में एक वाणिज्य दूतावास शिविर पर खालिस्तान समर्थक उपद्रवियों ने हमला किया था। इस हमले में पुलिस की भूमिका भी संदेह के घेरे में आई, क्योंकि कई रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि पुलिस ने उपद्रवियों के खिलाफ कार्रवाई करने में पर्याप्त कदम नहीं उठाए थे।इस घटना के बाद से ट्रूडो और उनकी सरकार आलोचनाओं का सामना कर रही हैं, न केवल भारत में, बल्कि कनाडा में भी खालिस्तानी समर्थकों के प्रति उनके लचीले रवैये के लिए सवाल उठाए जा रहे हैं। भारत ने पहले भी कनाडा सरकार पर खालिस्तानी आतंकवादियों को पनाह देने का आरोप लगाया था, और अब ट्रूडो का यह बयान इस विवाद को और बढ़ावा दे रहा है।इस हमले और इसके बाद की घटनाओं के चलते, कनाडा सरकार पर भारत समेत कई अन्य देशों का दबाव बढ़ गया है, ताकि वह खालिस्तानी समर्थकों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करे और हिंसा को बढ़ावा देने वालों के खिलाफ सख्त कदम उठाए। ट्रूडो का यह बयान इस विवाद के बीच आया, जब कनाडा में खालिस्तानी अलगाववादियों के खिलाफ कार्रवाई न करने को लेकर लगातार आलोचना हो रही थी।
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