गाजियाबाद। दो बेटियों ने एक अत्यंत साहसिक कदम उठाया, जिससे उनके परिवार की 72 वर्षीय मां का ब्रेन डेड होने के बावजूद दूसरों को नया जीवन मिल सका। यह मामला उस वक्त सामने आया जब गाजियाबाद के इंदिरापुरम की निवासी महिला को गंभीर ब्रेन हैमरेज के बाद मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल वैशाली में भर्ती किया गया। अस्पताल में उनकी स्थिति का मूल्यांकन करने के बाद डॉक्टरों की टीम ने उन्हें ब्रेन डेड घोषित कर दिया। इसके बाद डॉक्टरों ने महिला की बेटियों से ऑर्गन डोनेट करने की संभावना पर चर्चा की। जिसे उन्होंने बिना किसी हिचकिचाहट के स्वीकृति दे दी। इस निर्णय से महिला के अंगों को बचाकर अन्य मरीजों का जीवन बचाया गया।
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महिला के अंगों को सुरक्षित निकालने के बाद लिवर और दोनों किडनियों को ट्रांसप्लांट के लिए भेजा गया। लिवर को 51 वर्षीय पुरुष मरीज को ट्रांसप्लांट किया गया। जो क्रोनिक लिवर डिजीज से पीड़ित थे। एक किडनी 43 वर्षीय महिला को दी गई, जो क्रोनिक किडनी डिजीज से जूझ रही थीं। दूसरी किडनी को ग्रीन कॉरिडोर के माध्यम से पीएसआरआई हॉस्पिटल भेजा गया, जहां उसे अन्य मरीज के लिए ट्रांसप्लांट किया गया। यह ट्रांसप्लांट सर्जरी मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल वैशाली में की गई। लिवर ट्रांसप्लांट टीम का नेतृत्व डॉक्टर सुभाष गुप्ता और डॉक्टर राजेश डे ने किया। जबकि किडनी ट्रांसप्लांट टीम का नेतृत्व डॉक्टर अनंत कुमार और डॉक्टर नीरू पी. अग्रवाल ने किया।
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यह ट्रांसप्लांट सर्जरी मेडिकल क्षेत्र में एक बड़ा उदाहरण बन गई है। जिसमें न केवल मेडिकल टीम की विशेषज्ञता का प्रदर्शन हुआ, बल्कि परिवार और बेटियों की ओर से किए गए साहसिक निर्णय ने कई जिंदगियों को बचा लिया। गाजियाबाद की इस घटना से यह भी साबित होता है कि अंग दान से कितनी ज़िंदगियों को नया जीवन मिल सकता है। महिला की बेटियों ने अपनी मां के अंग दान करने का निर्णय लेकर न केवल मेडिकल समुदाय को प्रेरित किया, बल्कि इस बात की भी मिसाल पेश की कि कैसे संकट के समय मानवता की सेवा की जा सकती है।