जो जन्मता है उसे मृत्यु का आलिंगन अवश्य करना पड़ता है। संसार में ऐसी कोई वस्तु नहीं, जिसे विधाता ने स्थायी बनाया हो। प्राणी जो यह समझता है कि मर जाने के बाद कुछ बाकि न रहेगा सो यह विचार भी गलत है। वर्तमान देह को धारण करने से पहले क्या वह नहीं था, क्या मैं नहीं रहा अथवा संसार के अन्य लोग नहीं रहे तथा इस देह के विनाश हो जाने पर क्या हम सब भविष्य में उत्पन्न न होंगे।
ऐसा नहीं है, हम सब पहले थे और आगे भी रहेंगे, क्योंकि हम शरीर नहीं आत्मा है और आत्मा सदैव थी वर्तमान में हैं और आगे भी रहेगी। देही अर्थात आत्मा के वर्तमान देह में जैसे बचपन, जवानी और वृद्धावस्था है वैसे ही इस देह का त्याग और दूसरे देह की प्राप्ति है। जैसे ये तीन अवस्थाएं बदल जाने पर भी आत्मा ज्यों का त्यों रहता है, उसी प्रकार मृत्यु भी एक अवस्था है।
उससे आत्मा में कोई परिवर्तन नहीं होता। अत: वर्तमान के जिस शरीर के आत्मा से हमारा ममत्व है और वह नहीं रहा अर्थात उसके वर्तमान शरीर से उसका सम्बन्ध टूट जाने पर भी आत्मा तो वर्तमान है, मौजूद है फिर हम शोक किस बात का करें।