आज सारा संसार आतंकवाद और उग्रवाद से त्रस्त है। आतंकी सभी को अपने विचारों और अपनी मान्यताओं के अनुसार ढालना चाहते हैं। जो उनके विचारों का समर्थन नहीं करता उसे वह समाप्त कर देना चाहता है। वे बम या गोली से आदमी को उड़ा तो सकते हैं, परन्तु उसके विचारों को समाप्त नहीं कर सकते।
धर्म के नाम पर चारों ओर हिंसा का नंगा नाच हो रहा है, उसके कारण लोगों ने धर्म के सच्चे स्वरूप को ही विकृत कर दिया है। वास्तव में ऐसे लोग अधर्मी हैं, उनका धर्म से कोई लेना-देना ही नहीं है। धर्म का अर्थ है हमारे विचार हिमालय की तरह ऊंचे हों, गंगा जल की तरह पवित्र हों। उसके अन्दर भेदभाव, राग द्वेष न हो।
भगवान भी उसी के भीतर निवास करते हैं, जिसके भीतर काम, क्रोध, द्वेष, ईष्र्या, लोभ, अहंकार तथा विशेष रूप से हिंसा का भाव लेश मात्र न हो। यदि हमारे मन में विध्वंसकारक प्रवृत्ति नहीं होगी तो ऐसे में ही परमपिता परमात्मा हमारे हृदय में विराजेंगे। इसलिए मन की निर्मलता और मानवीय गुण हमारे भीतर विद्यमान रहने चाहेंगे। ईश्वर की कृपाएं तभी प्राप्त होंगी।