जो परमात्मा को नहीं भूलते परमात्मा कभी उन्हें नहीं भूलता। संसार को भूलकर केवल प्रभु को ही अपना मानने से भक्ति भाव से निरन्तर वृद्धि होती रहती है। संसार को भगवान का मानकर उन्हीं की प्रसन्नता के लिए संसार से जो कुछ भी हमें मिलता है वह सब संसार की सेवा में लगा देना ही भक्ति है, पूजा है।
प्रभु के अस्तित्व एवं महिमा को स्वीकार करना ही स्तुति है। प्रभु से सम्बन्ध स्वीकार करना ही उपासना है। प्रभु प्रेम की आवश्यकता अनुभव करना ही प्रार्थना है। सांसारिक सुखों को अपने लिए आवश्यक मानना भगत प्राप्ति में सबसे बड़ा विघ्र है। संसार में तो रहो, किन्तु संसार के ही बनकर न रहो।
संसार में आसक्ति ही प्रभु मिलन में सबसे बड़ी बाधा है। संसार को भोग प्रदार्थ परमात्मा ने भाग के लिए ही दिये हैं, उनका संयम के साथ उपभोग करें, परन्तु उनमें लिप्तता किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है।