अनमोल वचन
बाहर बैठे शत्रु से लडाई लडना और बचाव करना सरल है, परन्तु अपने भीतर बैठे मन रूपी शत्रु से लडाई तथा बचाव करना कठिन है। सच्चा योद्धा वही है, जो मन को पराजित करने में सफल हो जाता है। दूसरे प्रकार का सच्चा योद्धा वह है, जो परमार्थ करता है। उसकी सफलता के लिए बडे से बडा बलिदान देने को तत्पर रहता है। परमार्थी का वास्तविक संघर्ष मन और उसके विकारों के साथ है। सच्चा वीर परमार्थ में उन्नति करना चाहता है, परन्तु मन उसे संसार के धंधों में, धन-दौलत और मान-बडाई की ओर आकर्षित करता है। मनीषियों ने परमार्थ को भी भक्ति कहा है। परमार्थ के मार्ग पर चलकर ही उसे परमात्मा की प्राप्ति हो जाती है। वह सांसारिक पदार्थों को मात्र निज स्वार्थों की पूर्ति में ही प्रयोग करने को पाप समझता है। कबीर की वाणी में ‘तीर तुपक से जो लडे सो तो सूर न होय, माया तजि भक्ति करे सूर कहावे सोय। अर्थात तीर तल का सो जो युद्ध करता है वह सच्चा योद्धा नहीं है, सच्चा योद्धा वह है जो अपनी धन-दौलत को परहित में त्याग कर देता है, उसी को परमात्मा की भक्ति मानता है।