परमात्मा सभी प्राणियों के भीतर विद्यमान है। यदि न होता तो सबके भीतर का निर्माण नहीं कर सकता था। सबके भीतर-बाहर की न जान सके वह सर्वव्यापक एवं सर्वज्ञ नहीं हो सकता। यदि सर्व व्यापक, सर्वज्ञ नहीं होगा तो ऐसे में वह अल्पशक्ति, अल्पज्ञ ही होगा और ऐसा मेरा प्रभु हैं नहीं। इसलिए जब भी जहां भी रहो सदैव, सर्वत्र, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान, परम दयालु सभी प्राणियों में विद्यमान परमपिता परमात्मा का स्मरण चिंतन करना चाहिए। प्रत्येक परिस्थिति में मन में यह सत्य दृढतापूर्वक रहना चाहिए कि परमात्मा सदैव है, सर्वत्र है, सर्वज्ञ है ताकि हम पाप से बचे रहें तथा अच्छे कर्मों में प्रवृत रहे। अच्छे कर्मों के साथ जीवन यात्रा समाप्त करना ही मानव जीवन की सफलता है, जो व्यक्ति शुभ कर्मों से विमुख होकर पाप कर्मों में प्रवृत रहता है वह जन्म जन्मान्तरों में अधम योनियों में ही भ्रमण करता रहता है। मानव योनि उसे पुन: प्राप्त नहीं होती।