मेरठ। स्टांप घोटाले की जांच ईओडब्ल्यू को ट्रांसफर होने का पत्र जारी होने पर क्राइम ब्रांच की विवेचना बीच में लटक गई है। पुलिस ने विवेचना को आगे नहीं बढ़ाया। अब सिर्फ बयानों पर कैसे चार्जशीट तैयार हो सकती है। मेरठ व्यापार मंडल के पदाधिकारियों के साथ पीड़ित व्यापारी प्रतिदिन पुलिस-प्रशासन अधिकारियों के चक्कर काट रहे हैं। फोरेंसिक लैब से फर्जी स्टांप के मिलान कॉपी की रिपोर्ट तक पुलिस नहीं ले पाई है। इसे लेकर पुलिस की विवेचना पर भी सवाल उठना लाजिमी है।
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इसको लेकर व्यापारियों में रोष है। पुलिस की कार्यशैली को लेकर व्यापारी भड़क गए और इस मामले में एसएसपी से लेकर डीएम तक शिकायत की है।
व्यापारियों का आरोप है कि 997 रजिस्ट्री में फर्जी स्टांप लगाया गया है। इसको क्राइम ब्रांच अपनी विवेचना में प्रमाणित नहीं कर पा रही है। स्टांप पर लगी मुहर और हस्ताक्षर फर्जी बताकर कोषागार ने अपना पल्ला झाड़ लिया है। स्टांप फर्जी है या असली, विभागीय अधिकारियों ने कोई लिखित में जवाब पुलिस को नहीं दिया। इसकी प्रकरण की जांच आगे नहीं बढ़ी तो पुलिस ने पत्राचार कर विवेचना को ईओडब्ल्यू में ट्रांसफर कराने के लिए शासन से मांग की। इसको स्वीकृति मिल गई, लेकिन जांच ट्रांसफर करने की प्रक्रिया लंबी होना बताकर मामला अटका हुआ है।
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एडीएम वित्त सूर्यकांत त्रिपाठी का कहना कि मामले की जांच क्राइम ब्रांच में चल रही है। शासन स्तर से भी एसआईटी गठित है, जोकि इससे संबंधित जांच करने में लगी हुई है। स्टांप घोटाले के प्रकरण में मुख्य आरोपी विशाल वर्मा, एके गुप्ता, राहुल वर्मा सहित पांच लोग जेल में निरुद्ध है।