नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों में बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि सिर्फ अधिकारों के दुरुपयोग या प्रशासनिक फैसलों में त्रुटि को भ्रष्टाचार नहीं माना जा सकता। अगर रिश्वतखोरी का आरोप लगाया जाता है, तो उसके लिए स्पष्ट लेन-देन के ठोस सबूत होने चाहिए, वरना मामला खारिज हो सकता है।
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गुजरात के एक अधिकारी के केस में आया फैसला
यह ऐतिहासिक निर्णय गुजरात से जुड़े एक मामले में आया, जिसमें एक सरकारी अधिकारी पर मछली पालन की टेंडर प्रक्रिया में गड़बड़ी के आरोप थे। हाईकोर्ट ने भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत केस दर्ज किया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि रिश्वत या निजी लाभ का कोई ठोस प्रमाण नहीं होने पर इसे भ्रष्टाचार नहीं कहा जा सकता।
इस फैसले का असर देशभर में सरकारी अधिकारियों, कर्मचारियों और भ्रष्टाचार विरोधी जांच एजेंसियों पर पड़ सकता है। अब भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच में स्पष्ट प्रमाण की अनिवार्यता होगी, जिससे मनगढ़ंत मामलों पर रोक लग सकती है।