मेरठ। समान नागरिक संहिता (यूसीसी) भारत में एक महत्वपूर्ण संवैधानिक एवं सामाजिक विषय है। यह एक ऐसा कानून होगा, जो सभी नागरिकों के लिए समान व्यक्तिगत नियमों को लागू करेगा, चाहे उनका धर्म, जाति, या लिंग कुछ भी हो। वर्तमान में, भारत में विभिन्न धर्मों के लिए अलग-अलग पर्सनल लॉ (हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, पारसी आदि) लागू हैं, जो विवाह, तलाक, संपत्ति, गोद लेने और उत्तराधिकार जैसे मामलों को नियंत्रित करते हैं।
ये बाते प्रोफेसर बंदिनी कुमार ने कही। प्रोफेसर बंदिनी कुमार मेरठ में आयोजित ‘समान नागरिक संहिता और अल्पसंख्यक’ विषय पर सेमिनार में अपने विचार रख रहे थे। इस दौरान अन्य वक्ताओं ने भी सामान नागरिक संहिता के बारे में अपने विचार व्यक्त किए।
मुज़फ्फरनगर में किराना व्यापारी की सड़क दुर्घटना में दर्दनाक मौत, घासमंडी में थी दुकान !
प्रोफेसर बंदिनी कुमार ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 44 में राज्य के नीति निदेशक तत्वों के अंतर्गत समान नागरिक संहिता को लागू करने की बात कही गई है। लेकिन यह अभी तक केवल गोवा में आंशिक रूप से लागू है। यह बहस इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि यह धर्मनिरपेक्षता, लैंगिक समानता और सामाजिक न्याय से सीधे जुड़ी हुई है।
मुज़फ्फरनगर में पत्नी करती थी किसी से फ़ोन पर बात, अब हो गयी फरार, पति पहुंचा पुलिस की शरण में !
उन्होंने कहा कि समान नागरिक संहिता की आवश्यकता के संबंध में दिए जाने वाले प्रमुख तर्कों में लैंगिक समानता प्रमुख है। वर्तमान पर्सनल लॉ कई बार महिलाओं के अधिकारों को सीमित कर देते हैं, खासकर मुस्लिम पर्सनल लॉ में तीन तलाक, हलाला ,बाल विवाह और बहु-विवाह जैसी प्रथाएं। यूसीसी लागू होने से पुरुषों और महिलाओं के लिए समान अधिकार सुनिश्चित किए जा सकते हैं। इसके साथ ही राष्ट्रीय एकता और समरसता में वृद्धि हेतु भी यूसीसी की मांग जोड़ पकड़ रही है ,विभिन्न समुदायों के अलग-अलग पर्सनल लॉ भारत की एकता के सिद्धांत के विरुद्ध हैं।
अधिवक्ता विभु पंडित ने कहा कि समान नागरिक संहिता सभी नागरिकों को एक ही कानून के दायरे में लाकर सामाजिक समरसता को मजबूत कर सकती है। इसी क्रम में ये भी ध्यातव्य है कि विभिन्न पर्सनल लॉ होने के कारण न्यायालयों में लंबित मामलों की संख्या बढ़ जाती है। उन्होंने कहा कि एक समान कानून होने से न्याय प्रक्रिया तेज और प्रभावी होगी। भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है, लेकिन विभिन्न पर्सनल लॉ धर्म-आधारित भेदभाव को बढ़ावा देते हैं। यूसीसी इसे खत्म कर एक सच्चे धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की नींव रखेगा। साथ ही यूसीसी को लेकर कई चुनौतियाँ और विरोधी स्वर भी गूंज रहे है। कई धार्मिक समूह इसे अपनी परंपराओं और धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला मानते हैं। विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय का मानना है कि यूसीसी इस्लामी कानून (शरिया) में हस्तक्षेप करेगा।
इसके साथ ही कई बौद्धिक समूहों का मानना है कि यह प्रयास सांस्कृतिक विविधता के लिए एक चुनौती बन कर उभरेगा। बनारस विवि के प्रमोद पांडे ने इस दौरान कहा कि भारत की विविधता इसकी पहचान है। देश में इतने विभिन्न पर्सनल लॉ होने के कारण यूसीसी लागू करना एक जटिल प्रक्रिया होगी, जिसके लिए व्यापक सहमति और विचार-विमर्श आवश्यक होगा। इन तमाम समर्थन और विरोध के बीच उत्तराखंड ने 27 जनवरी, 2025 को समान नागरिक संहिता लागू कर दिया है और इस तरह वह ऐसा करने वाला भारत का पहला राज्य बन गया है।
उन्होंने कहा, राज्य विधानसभा ने फरवरी 2024 में इस कानून को एक समान कानूनी व्यवस्था बनाने के इरादे से पारित किया था जिसका पालन सभी नागरिक, चाहे उनकी धार्मिक मान्यताएँ कुछ भी हों, कर सकें। सभी समुदायों में महिलाओं को समान अधिकार देने वाले इस कदम की लैंगिक समानता की दिशा में एक कदम के रूप में सराहना की गई है। यह विधेयक राज्य के सभी निवासियों के लिए विवाह, तलाक, संपत्ति की विरासत, और लिव-इन रिलेशनशिप पर एक समान कानून का प्रस्ताव करता है, चाहे उनका धर्म या आस्था कुछ भी हो।
हालांकि, अनुसूचित जनजातियों को इस विधेयक के दायरे से बाहर रखा गया है। इस दौरान अन्य बुद्धिजीवियों ने भी इस विषय पर अपने मत व्यक्त किए। कार्यक्रम में प्रो. अजीत तिवारी, प्रो.राकेश शर्मा, डा. हरिश्वचंद, लेक्चरार अमित मिश्रा आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए।