Friday, November 22, 2024

महापुरुषों का व्यवहार

संसार में जितने भी महापुरूष हुए हैं, उनके जीवन को देखो तो पता लगेगा कि महापुरूष बड़े विनम्र होते हैं। अपने ज्ञान, विद्या और योग्यता के प्रदर्शन की चाह उनमें नहीं होती, बल्कि जैसे-जैसे उनमें गुणों की वृद्धि होती जाती है, वैसे-वैसे उनमें विनम्रता बढ़ती जाती है।

एक बार महात्मा गांधी एक स्थान पर भाषण देने गये। वे सादा वेष में थे। किसी आयोजक ने जो उनसे परिचित नहीं था, उनका वेष देखकर उन्हें नौकर समझ लिया।

उसने उन्हें सब्जी काटने और पानी लाने की आज्ञा दी। उन्होंने सहर्ष वह कार्य सेवा समझकर कर दिया। आयोजक को जानकारी होने पर अपने व्यवहार पर पश्चाताप हुआ और क्षमा मांगी, किन्तु गांधी जी के व्यवहार में किंचित भी अंतर नहीं आया।

ऐसे महापुरूषों से हमें भी शिक्षा लेनी चाहिए। देखो समुद्र में अनेक नदियां आकर मिलती हैं, परन्तु समुद्र शांत रहता है, उसमें बाढ नहीं आती। आप भी गम्भीर और विनम्र बनो। विद्या, धन, वैभव, उच्च पदवी, मान और सम्मान पाकर फूल मत जाओ। अपनी मर्यादा में रहना सीखो।

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