हमने वह युग देखा है, जब कई-कई पीढियों तक परिवार संयुक्त रूप से रहते थे। उसके लाभ भी बहुत थे, परन्तु आज के युग में संयुक्त परिवारों का विघटन शीघ्र हो जाता है। विघटन के दो मुख्य कारण होते हैं, जैसे छोटा भाई सोचता है कि बड़े भाई की आय कम है, मेरी अधिक, बडे के बच्चे अधिक हैं, मेरे कम, सुख-सुविधाएं सभी समान रूप से भोग रहे हैं, खर्चे भी सभी पर बराबर होते हैं। वहीं बड़ा भाई सोचता है मैं दिन रात-काम में जुटा रहता हूं, जबकि छोटा काम से बचता है, जबकि सभी सुविधाएं मेरे समान भोगता है।
इस संदर्भ में एक दृष्टान्त बड़ा ही प्रासंगिक है। पृथ्वी, जल, वायु, अग्रि में बहस होने लगी। पृथ्वी बोली सारी दुनिया का बोझ मैं उठाती हूं, सबका पेट भी मैं भरती हूं। जल ने कहा मेरे बिना जीवन भी नहीं वरन वनस्पति-प्राणी सभी कुछ सूखा ही सूखा दीखे, त्राहि-त्राहि मच जाये। पवन बोला-मैं दीखता नहीं तो मेरे बिना घुटन से क्या सबका गला न घुट जायेगा? अग्रि ने कहा-गर्मी और प्रकाश के बिना इस लोक में शीत और निस्तब्धता के सिवाय क्या बचेगा?
चारों का कथन पूरा हुआ फिर भी आकाश बोला नहीं। बार-बार पूछने पर उसने कहा-सबके मिलने से ही संसार गतिशील है, न किसी के अकेले चलाने से यह चलेगा न किसी अकेले के रूठ जाने से। सब मिलकर रहेंगे तो ही खुशहाली रहेगी। आकाश की यह बात इंसान के लिए भी उतनी ही उपयोगी और सार्थक है। परिवार में परस्पर सहयोग और सहकार से ही हमारी खुशहाली सम्भव है।