प्राय: लोग ऐसा कहते सुने जाते हैं कि परमात्मा ने जो भाग्य में लिख दिया वहीं मिलेगा। ईश्वर के द्वारा भाग्य लिखे जाने का अर्थ यह नहीं कि ईश्वर किसी भी मनुष्य का भाग्य अपनी मर्जी से लिखता है। कर्मों के अनुसार भाग्य बनाने का नियम प्रभु का बनाया हुआ है। जैसे कर्म होंगे अपने नियम के अनुसार वैसा ही मनुष्य के भाग्य का निर्माण भगवान करेगा। वास्तव में अपने भाग्य का निर्माता स्वयं मनुष्य ही है, प्रभु का नियम यह भी है कि मनुष्य को प्रत्येक कर्म का अलग से फल भोगना पड़ता है। पुण्य कर्मों से किये गये पाप कर्मों का नाश नहीं होता। पुण्य कर्म पुण्य कर्मों के खाते में और पाप कर्म पाप कर्मों के खाते में जमा होते जाते हैं। दोनों प्रकार के कर्मों का फल भोगने से ही कर्मों से छुटकारा मिलेगा। जब तक जीव किये गये कर्मों के प्रभाव से मुक्त नहीं होता वह आवागमन के चक्र को तोड़कर प्रभु से मिलाप नहीं कर सकता। केवल सत्कर्म ही वह साधन है, जिसके द्वारा प्रभु मिलन के मार्ग के कांटे और अवरोध समाप्त किये जा सकते हैं। सत्कर्म ही जन्म मरण के बंधन से मुक्त कर सकते हैं। परमानन्द को प्राप्त करा सकते हैं