Monday, November 25, 2024

रोगों का उपचार करना व स्वस्थ रहना है तो बागवानी कीजिए

विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधों, वनस्पतियों, साग-सब्जिय़ों तथा फल-फूलों को उगाना, उनकी देखभाल करना जो एक विज्ञान ही नहीं, एक कला भी है जैसे बाग़बानी, पुष्पोत्पादन, फलोत्पादन या सब्जिय़ों की खेती आदि न केवल एक अच्छी हॉबी या शौक़ है अपितु एक उपचारक पद्धति भी है।

प्रकृति अथवा पेड़-पौधों का सामीप्य न केवल पर्यावरण प्रदूषण को सोखकर हमें स्वच्छ परिवेश उपलब्ध कराता है अपितु हमारे तनाव, दुष्चिंता, क्रोध और कुंठा जैसे नकारात्मक मनोभावों को अपने में सोखकर हमें सकारात्मक ऊर्जा तथा मनोभावों से ओतप्रोत कर देता है।

पौधों को उगाना, उनकी देखभाल करना और उनकी पैदावार से लाभ कमाना एक व्यवसाय हो सकता है लेकिन यह एक रचनात्मक कार्य भी है। विशेष रूप से शौकिय़ा बाग़बानी या गमलों में पौधे उगाने और रचनात्मक कार्य से न केवल हमारे ऊर्जा के स्तर में वृद्धि होती है बल्कि जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी हमारी क्षमता और कार्य कुशलता में वृद्धि होती है। जब हताशा हावी हो जाए, निराशा से नींद न आए और अवसाद का अंत न हो तो ऐसे में शरीर के तने हुए तंतुओं को तनाव रहित करने के लिए तथा मन-मस्तिष्क को शांत करने एवं संयत रखने के लिए मनोचिकित्सक अब खेती-बाड़ी और बाग़्ाबानी करने का परामर्श देते हैं।

बीजों से अंकुर निकलना, कलमों की गाँठों से पत्तियाँ विकसित होना, पौधों का बढऩा, निरंतर नई-नई पत्तियों का आना और उनके रंग में परिवर्तन होना, कलियों का दृष्टिगोचर होना तथा फूलों का खिलना ये सब ऐसी क्रियाएं हैं जिनका अवलोकन हमें प्रकृति से जोड़ कर हममें एक नई स्फूर्ति, एक नई चेतना भर देता है।

सर्दियों में पत्र-पुष्प विहीन कोई ठूँठ-सा लगने वाला पौधा जब वसंत ऋतु का स्पर्श पाकर गाँठ दर गाँठ फूटने लगता है, पल्लवित-पुष्पित होकर अपनी छटा बिखेरने लगता है तो उसे देखकर हमारा मन भी पल्लवित-पुष्पित होने लगता है। हमारी कल्पनाशीलता का विकास होता है तथा रचनात्मकता के स्तर में वृद्धि होती है। मन प्रसन्न होने लगता है।

मन प्रसन्न हो तो तन के प्रसन्न अर्थात् स्वस्थ होने में देर नहीं लगती। प्रकृति अपने नए-नए रूपों में प्रकट होने लगती है। प्रकृति की इस अनुपम रचनात्मकता को देखकर हम स्वयं रचनात्मक होने लगते हैं, एक कलाकार बन जाते हैं और पुन: दुगने वेग से पौधों की देखभाल में जुट जाते हैं।  मैंने अपने जीवन में जो पहली कविता लिखी थी वह पौधों की देखभाल के दौरान ही निःसृत हुई थी।

पौधों की देखभाल, कटाई-छँटाई उचित मात्रा में खाद-पानी देना, उनको सलीक़े से रखना तथा सजाना-सँवारना हमारे स्वयं के अंदर एक सुव्यवस्था को उत्पन्न कर देता है। हम अपने जीवन में अधिकाधिक व्यवस्थित होने लगते हैं और इस सब का हमारे स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

पौधों की कटाई-छँटाई अथवा प्रूनिंग और उसके बाद नई-नई कोंपलों का विकसित होना इस बात का प्रतीक है कि हम अपने मन में समाए नकारात्मक तथा अनुपयोगी विचारों से मुक्त होकर उनके स्थान पर उपयोगी सकारात्मक विचारों को ग्रहण करने के लिए तत्पर हैं। ‘योग’ में वर्णित यम और नियम की तरह जीवन में सकारात्मक दृष्टिकोण के विकास के लिए यह अनिवार्य है।

प्राकृतिक सौंदर्य से अभिभूत होना स्वाभाविक है अत: हम प्रकृति का सान्निध्य पाने के लिए सदैव तत्पर एवं उद्यत रहते हैं और यदि बाग़बानी के रूप में इस प्राकृतिक सौंदर्य का निर्माण हम स्वयं करते हैं तो हमें अद्वितीय आनंद की प्राप्ति होती है। हम अपने रहने के कमरे में बनावटी पौधों की जगह यदि वास्तविक पौधे रखते हैं हमारे पूरे परिवार के स्वास्थ्य और चिंतन पर इसका अत्यंत सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इससे हमें न केवल प्राकृतिक परिवेश मिलता है अपितु ऑक्सीजन के रूप में अधिकाधिक यात्रा में जीवनदायिनी ऊर्जा भी प्राप्त होती है। हमारी प्राणदायिनी शक्ति अथवा ऊर्जा के स्तर में वृद्धि का सीधा सा तात्पर्य है हमारा अधिकाधिक स्वस्थ तथा उत्साहपूर्ण होना।

जंगली खर-पतवार की कटाई-छँटाई से अवसाद कम होता है और गहन हरीतिमा तथा प्रतिदिन बढ़ते पेड़-पौधे निराशा को दूर कर जीवन के प्रति आशा तथा उत्साह का संचार करने में पूरी तरह सक्षम होते हैं।
प्रकृति के सान्निध्य से लाभांवित होकर अद्वितीय आनंद की प्राप्ति करने तथा पूर्ण रूप से स्वस्थ एवं उत्साहित बने रहने के लिए आज ही बाग़्ाबानी को अपनी जीवन शैली का अनिवार्य अंग बना लीजिए।
– सीताराम गुप्ता

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