बल ज्ञानी के पास भी होता है और अज्ञानी के भी। यदि बल ज्ञानी के पास है तो वह इसका उपयोग अपने साथ-साथ कल्याण हेतु भी करेगा। इसका उपयोग वह इस विधि से करेगा कि वह स्वयं उसके लिए भी और दूसरों को भी कल्याण और मंगल का कारण बने। परन्तु यह बल जब अज्ञानी के पास आ जाता है तो वह इसका उपयोग स्वयं अपने तथा दूसरों के विनाश के लिए करेगा।
राम भी बलवान थे और रावण भी बलवान थे। समान बल था दोनों के पास, बल्कि रावण के पास अधिक था। दोनों ने अपने बल का उपयोग किया। राम का बल सत्य की रक्षा का कारण बना और रावण का बल असत्य के पोषण और संहार का कारण बना। बल में भेद न था, दृष्टिकोण में भेद था। श्री राम का दृष्टिकोण ज्ञानी का दृष्टिकोण था और रावण का अज्ञानी का।
इसी प्रकार अधिकार यदि ज्ञानी को मिले तो जो भी उनके सम्पर्क में आयेगा, इसका लाभ उन्हें मिलेगा और यदि अधिकार अज्ञानी और अहंकारी को मिल जाये तो वह स्वयं तो अपयशी होगा ही उसके प्रभाव क्षेत्री भी उससे पीड़ित रहेंगे।
ज्ञानी का दृष्टिकोण मोक्ष का कारण बनता है, अज्ञानी का दृष्टिकोण वध और बन्धन का कारण बनता है।
हमें अपने भीतर ज्ञानी का दृष्टिकोण विकसित करना चाहिए, ताकि मोक्ष की प्राप्ति हो।