Monday, February 24, 2025

 महाराजा रणजीत सिंह का राज्य ‘राम राज्य’

महाराजा रणजीत सिंह जो महाबली, महादानी, महायोद्धा, कुशल प्रशासक, सर्वश्रेष्ठ प्रजापालक एवं न्यायविद थे, इतने उदार दिल थे कि एक दिन घोड़े पर सवार होकर निरीक्षण पर जा रहे थे तो एकाएक फेंका हुआ पत्थर गलती से उनको आ लगा जो बेर तोडऩे के लिए बच्चे बेरी के पेड़ को ही मार रहे थे।

तुरत फुरत उन्होंने दरबारियों को कहा कि बच्चों को बिल्कुल भी तंग न किया जाये क्योंकि पत्थर लगने से बेरी का पेड़ इनको बेर देता है किन्तु पत्थर तो बेरी के पेड़ के स्थान पर राजा को लगा है, इसलिए मुझसे तो इनको बेर के स्थान पर सोने की मोहरें ही मिलनी चाहिए। सोने की मोहरें पाकर बच्चे खुशी खुशी घर लौट गये।

दयालुता, सेवाभाव के प्रसंग तो महाराजा रणजीत सिंह के प्रतिदिन के जीवन के अंग ही बन चुके थे। एक गरीब वृद्ध ब्राह्मण महिला अपने घर से खाना बनाने वाला लोहे का तवा अपने साथ दरबार में ले आयी और चुपके से ही महाराज के कपड़ों से रगडऩे लग गयी।

काले कपड़े होते देख महाराजा ने धीरे से वृद्ध महिला से इसका कारण पूछा जवाब में महिला ने कहा कि सुना है – राजा पारस हुआ करते हैं और पारस से लोहा रगडऩे पर वह सोना बन जाता है। अपनी दरिद्रता मिटाने के लिए मैंने भी ऐसा ही किया किन्तु यह तो फिर भी लोहा ही रहा। वृद्धा पर करूणाभरी दृष्टि डालते हुए तुरन्त महाराज बोल पड़े – ‘नहीं माता, देखो यह सोने का बन चुका है।

महाराज के आदेश से लोहे के तवे के तोल बराबर सोना वृद्ध महिला को देकर सम्मानपूर्वक घर भेज दिया गया। शेरे पंजाब तो वाकई ऐतिहासिक सच्चे पारस ही थे। ब्रिटिश साम्राज्य की इनके राज्य की सीमाओं के पास फटकने तक की भी हिम्मत नहीं होती थी। उन्होंने हरिद्वार, काशी, ज्वालामुखी, कांगड़ा, कटास आदि अनेकानेक हिन्दू मंदिरों एवं धर्मशालाओं का जीर्णोद्धार एवं निर्माण कराया और अन्य आर्थिक सहायता प्रदान कर विश्वनाथ मंदिर को स्वर्णपत्र से आच्छादित कराया।

अनेकानेक मस्जिदों-मजारों जिसमें लाहौर की भिखारी शाह की सुनहरी मस्जिद, हजरत की मजार, मुल्तान में पीर बहावल की मजार इत्यादि प्रमुख हैं, का पुनरूद्धार एवं निर्माण कराया एवं अन्य आर्थिक सहायता प्रदान की। स्वर्ण मंदिर, अकाल तख्त अमृतसर, दरबार साहिब, पटना साहिब एवं हजूर साहिब नांदेड़ इत्यादि अनेक ऐतिहासिक गुरूद्वारों एवं धर्म स्थानों की सेवा कराई एवं आर्थिक सहायता प्रदान की। ‘मानस की जात सभै एकै पहचानबो’।

शेरे पंजाब की अपनी सेना के जरनैलों को सख्त हिदायत थी कि जीते हुए इलाकों में किसी धर्म, धर्म स्थल, धर्म पुस्तक का अपमान न होने पावे, लूट मार न हो और किसी भी धर्म की महिला को पूर्ण सम्मान मिले। उन के राज्य में सबको पूरी पूरी आजादी थी और ‘सर्व हिताय सर्व सुखाय’ ही राज्य का मुख्य उद्देश्य था। महाराजा सबके हमदर्द थे और स्वयं को ‘सिंह साहिब’ कहलवा कर बहुत प्रसन्न हुआ करते थे।

राज्य प्रबंधन के लिए मंत्री, अधिकारी अथवा कर्मचारी के चयन हेतु बिना भेदभाव केवल योग्यता और कार्यदक्षता ही आधार होता था जिसमें हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, यूरोपी इत्यादि सभी को प्रजा सेवा करने का दायित्व मिला हुआ था। ‘गुरूनानक गुरू गोविंद सिंह’ ‘नानकशाही’ सिक्का होता था। ‘नानक नाम चढ़दी कला, तेरे भाणै सरबत दा भला।
– सुरजीत सिंह साहनी

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