Monday, November 25, 2024

करेंसी नोट का सफरनामा

सारे विश्व में वर्तमान में सार्वभौमिक रूप से मुद्रा के रूप में कागज के नोट प्रचलित हैं। वैसे धातु के सिक्कों के रूप में वह मुद्रा के स्वरूप में भी ये आम रूप से कुछ रूपों में अभी भी प्रचलित हैं पर हमेशा से ऐसा नहीं था कि सिर्फ कागज के ही नोट प्रचलन में रहे हों। समय-समय पर विभिन्न प्रकार की मुद्राएं प्रचलन में रही हैं। इन में से कई करंसियाँ तो बड़ी ही विचित्र रही हैं।

ऐतिहासिक स्रोतों से जानकारी मिलती है कि विश्व में सर्वप्रथम मुद्रा के रूप में जो नोट जारी किए गए थे, वे चमड़े के थे । इन प्रारंभिक चमड़े के नोटों को जारी करने वाला शासक था, ईसा से 1०० वर्ष पूर्व पड़ोसी देश पर शासन कर रहा चीन का बादशाह ‘बूती। इसके बाद, 13वीं शताब्दी में ब्रिटेन के बादशाह एडवर्ड प्रथम ने अपने कर्मचारियों को वेतन देने के लिए भी चमड़े के नोट जारी किये थे।

बाद में शासकों में टयूडर्स ने भी ऐसे ही चमड़े के नोटों की परंपरा को अपनाया था। सर विलियम रेवनटस के नाटक ‘द कामेडी आफ बिट्स में चमड़े के नोटों का विवरण भी मिलता है । इससे चमड़े की करेंसी की प्राचीनता का आभास लगता है । भारत में भी चीन की देखादेखी मुहम्मद तुगलक का उल्लेख इतिहास में कुछ समय तक चमड़े के सिक्के चलाने वाले सनकी शासक के रूप में मिलता है।

आइये अब बात करें कागज की करेंसी की । अब तक ज्ञात प्रथम कागज का नोट ब्रिटेन में जारी किया गया था । ऐसा नोट 1635 में कार्नवाल की सैनिक छावनी में जारी हुआ था। यह वेतन का कागजी सर्टिफिकेट था । जब प्रथम इंग्लिश बैंक अस्तित्व में आया तो इस बैंक ने भी कागज के नोट करेंसी के रूप में प्रसारित किये थे । इस इंग्लिश बैंक द्वारा प्रचलित ये कागजी नोट किसी भी तत्कालीन पुस्तक विक्रेता के यहाँ सार्वजनिक रूप से उपलब्ध थे और उन्हें बहुत आसानी से वहां से क्रय किया जा सकता था। पुस्तक विक्रेताओं द्वारा बाद में  इसमें हेराफेरी का धंधा शुरू कर दिया गया, परिणामस्वरूप बैंक ने अपनी उक्त कागजी करेंसी को वापस ले लिया।

कनाडा में प्रथम फ्रेंच कालोनी के संस्थापक ‘जेकस दी मिमूल्हस ने उन्हीं दिनों कागज की कमी हो जाने पर ताश के पत्तों पर नोटों को छापने का चलन शुरू कर दिया। यह ताश करेंसी बहुत सफल रही और लोगों ने भी इसे आसानी से अपना लिया। यह सभी लोगों की पसंदीदा हो गई। स्थिति यहां तक पहुंची कि पहली बार सफलतापूर्वक प्रचलन के बाद इसे सात बार और जारी किया गया। इस प्रकार ताश के पत्तों पर जारी करेंसी काफी लंबे समय तक चलन में रही।

अब्राहम लिंकन के अमेरिका के राष्ट्रपति के कार्यकाल में सरकार का बहुसंख्यक अमेरिकियों पर से विश्वास उठ चुका था और मुद्रा के दुरुपयोग की घटनाओं में कल्पनातीत वृद्धि हो जाने के कारण एक नई करेंसी की आवश्यकता महसूस हुई । लोगों ने इस पर विचार किया और आपस में तय करने के बाद डाक टिकटों के विनिमय के लिए इसका प्रयोग करना शुरू कर दिया । सरकार ने इसे देखा तो उसने इसी तर्ज पर पोस्ट करेंसी जारी कर दी ।

यह पोस्ट करेंसी एक प्रकार के कागजी नोट थे जिन पर एक कोने पर डाक टिकट छपा रहता था। इन करेंसियों का मूल्य अलग-अलग सेटों में था। लोगों ने इस पोस्ट करेंसी को सुगमता से अपना लिया और यह सहज ही प्रचलन में आ गई। इस प्रकार लोगों का मुद्रा पर विश्वास कायम हुआ। इस आधार पर कह सकते हैं कि यह पोस्ट करेंसी काफी सफल रही। लोगों द्वारा भी समय-समय पर अपनी सुविधा के अनुरूप करेंसी जारी करने की बात पता चलती है। भारत में भी प्राचीनकाल में व्यापारियों द्वारा ‘हुंडी का प्रयोग चलता था । यह भी अशासकीय कागजी मुद्रा ही थी।

भारत में उपलब्ध इतिहास (पुराना इतिहास आक्रमणकारियों द्वारा नष्ट कर दिए जाने के कारण) के अनुसार शेरशाह सूरी ने चांदी के एक तोला (11.534 ग्राम) का चांदी का अपना सिक्का चलाया था। पूर्व में भारत में प्रचलित मुद्रा ‘रुपया (जो संस्कृत के ‘रूप अथवा ‘रुप्प्याह  जिसका अर्थ चांदी का सिक्का होता है।) चलाया था। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि मुस्लिम आक्र मण से पूर्व भारत में चांदी और सोने के सिक्के अवश्य प्रचलन में रहे होंगे, तभी तो शेरशाह ने अपनी मुद्रा का नाम रुपया रखा।

उसने जनसाधारण के लिए तांबे के कम मूल्य के सिक्के ‘दाम और सोने के एक तोले के सिक्के ‘मोहर नाम से चलाए। मुगलों ने भी अपनी मुद्रा का यही नाम रखा। अंग्रेजों ने अपनी मुद्रा का नाम तो यही रखा मगर सिक्के का भार 11.66 करके चांदी की शुद्धता 91.7 करदी। पहले सोने और चांदी के मूल्यों में भारी अंतर नहीं था किन्तु उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में कई योरोपीय देशों और अमेरिका में चांदी के विशाल भंडारों के मिल जाने से चांदी का मूल्य सोने के मुकाबले बहुत गिर जाने से (सस्ती हो जाने के कारण) भारतीय मुद्रा का भी इसी सन्दर्भ में अवमूल्यन हो गया।

पहले रुपया सोलह आने, 64 पैसे और 192 पाई में विभाजित था। 1957 में सुविधा के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय समझौते के तहत अन्य देशों के साथ भारत ने भी इस विभाजन को समाप्त कर, रूपये को सौ पैसे का कर दिया। भारत में मुद्रा सम्बन्धी अधिकार उसे छापने तक के सारे अधिकार ‘रिजर्व बैंक आफ इण्डिया के पास हैं जबकि पाकिस्तान में यह अधिकार ‘स्टेट बैंक आफ पाकिस्तान के अधिकार में है।

भारत में धातु-मुद्रा का प्रचलन 18वीं शताब्दी तक पूर्ववत था किन्तु जब योरोपीय कम्पनियां व्यापार हेतु भारत में आईं तो उन्होंने अपनी आंतरिक व्यवस्था के निजी बैंक की स्थापना की और फिर तुरंत बाद ही भारत में कागजी मुद्रा (पेपर करेंसी) का प्रयोग प्रारम्भ हो गया। इस से पूर्व कागजी मुद्रा के रूप में भारत के व्यवसाई ‘हुंडी जिसे एक कागज पर रुपया अथवा माल के रूप में कोई व्यापारी वायदे के रूप में जारी करता था जिसका भुगतान निर्धारित स्थान और समय पर ‘धारक या उसके प्रतिनिधि को हो जाता था। यह वायदे या भुगतानादेश किसी भी रूप में हो सकता था। हुंडी का भुगतान न होना व्यापारी की साख को तबाह कर देता था।

भारत में पहली पेपर करेंसी तत्कालीन कलकत्ता के ‘बैंक आफ कलकत्ता ने सन 177० में चलाई थी। ब्रिटिश कम्पनियों का व्यापार जब बंगाल से निकल कर तत्कालीन बम्बई और तत्कालीन मद्रास तक फैला तो मुम्बई और चेन्नई में ‘बैंक आफ बम्बई और बैंक आफ मद्रास की स्थापना की गई। सन 1773 में जनरल बैंक आफ बंगाल एण्ड बिहार ने कागजी मुद्रा चलाई। फिर बम्बई और मद्रास बैंक से कागजी मुद्रा जारी हुई।

पेपर करेंसी एक्ट-1861 को जारी करके ब्रिटिश संसद ने भारत सरकार को प्राइवेट बैंकों से अधिकार लेकर भारत सरकार को नोट जारी करने का एकाधिकार दिया। भारत के पहले वित्त सदस्य जेम्स विल्सन को भारत में सरकारी नोट जारी करने का श्रेय जाता है। विल्सन की असामयिक मृत्यु के बाद उनका यह कार्य सैमुअल लाइंग ने सम्भाला।

ब्रिटिश काल में नोटों के प्रकाशन की जिम्मेदारी जैसा गुरुतर भार ब्रिटिशर्स द्वारा टकसाल मास्टरों , महालेखाकारों और मुद्रा नियंत्रक को सौंपा गया। ब्रिटिश इण्डिया के तत्कालीन नोटों पर महारानी विक्टोरिया के चित्र के साथ अलग-अलग रंग और साइज के 1०, 2०, 5०, 1०० और 1००० के नये नोट छाप कर जारी किये गये थे। प्रेसिडेंसी बैंक 1886 में स्थापित किया गया। अब देश में कई बैंक हो चुके थे और कागजी मुद्रा का प्रचलन ले जाने में आसानी के चलते आम हो चुका था।

बैंक आफ बंगाल ने तीन यूनी फेस्ड सीरिज में नोट छापे इनमे से पहली सीरिज स्वर्ण-मुद्रा के रूप में छापी गई थी तो दूसरी सीरिज कामर्स सीरीज थी इस पर एक ओर नागरी (हिंदी), बंगाली और उर्दू में बैंक का नाम लिखने के साथ ही एक महिला का चित्र भी था पीछे केवल बैंक का नाम था। इसकी तीसरी सीरिज 19 वीं शताब्दी के अंत में छापी गई थी। इस सीरिज को ब्रिटेनिका सीरिज कहा गया था। इस नोट में पूर्ववर्ती नोटों से हट कर कई बदलाव किये गये थे।

जैसे-जैसे भारत के अन्य क्षेत्रों में ब्रिटिश राज्य फैलता गया, स्वयंमेव उन क्षेत्रों में ब्रिटिश नोटों का प्रचलन बढ़ता गया। सन 19०3 से 11 के मध्य 5,1०,5० और 1०० के नोट रद्द कर दिए गये। 1917 में विश्व युद्ध के चलते सन 1917 में प्रथम बार राजा के चित्र वाले एक रूपये और ढाई रूपये के नोट छापे गये थे तो 1923 में 1० रु० का नोट छापा गया। सन 1928 में नासिक में स्थापित सिक्योरिटी प्रेस से बहुरंगी नोट प्रचलन हेतु 1932 उतारे गये। ब्रिटिश भारत सरकार द्वारा ‘रिजर्व बैंक आफ इण्डिया की स्थापना (1935) तक नोट जारी किये गये।

नासिक में पहला सिक्यूरिटी प्रेस स्थापित होने से पूर्व भारत की सारी कागजी मुद्रा बैंक आफ इंग्लैण्ड से छप कर आती थी। सन 1935 में कागजी मुद्रा जारी करने का अधिकार रिजर्व बैंक आफ इण्डिया को दे दिया गया। रिजर्व बैंक आफ इण्डिया ने 1938 में पहली बार अपने अधिकार से नोट छापा और जारी किया।
– राज सक्सेना

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