व्यक्ति के लिए सात कुव्यसन, बड़े पाप हैं। वे हैं मदिरापान, मांसाहार, द्यूत क्रीडा, चौर्य कर्म, शिकार खेलना, वेश्या गमन और परस्त्री गमन। इन कुव्यसनों का सेवन करने वाला मानव अपने मानव धर्म को त्याग देता है, अधर्मी बन जाता है। उसका जीवन नरक बन जाता है। उसके आत्मगुण विलुप्त हो जाते हैं।
यद्यपि ये सातों कुव्यसन महापाप की श्रेणी में आते हैं, परन्तु मदिरापान इन सारे पापों का जनक है। मदिरापान करने से व्यक्ति अपने होशो हवास को गंवा देता है। मदिरापान करते ही व्यक्ति, अपनी बुद्धि, अपना विवेक खो बैठता है। किसी अंग्रेजी कवि ने कहा है ”When the wine is in the wit is out” अर्थात मदिरा जब शरीर में प्रवेश कर जाती है तो विवेक बाहर का रास्ता पकड़ लेता है। सोचिए अविवेकी क्या करेगा?
विवेक ही वह तत्व है जो मनुष्य को पशु से ऊपर उठाता है। शराब पीते ही मनुष्य पशु तल पर पहुंच जाता है। उसका विवेक विलुप्त हो जाता है। मदिरा धन, धैर्य और शर्म खा जाती है। मदिरा दुर्गणों की खान है। मदिरापान करने वाले मनुष्य का पारिवारिक, सामाजिक और आध्यात्मिक पतन हो जाता है, उसे समाज में सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता, उसकी बात पर कोई विश्वास नहीं करता। वह अपमानित होता रहता है।
मदिरा समस्त हानियों का मूल है, जो सदैव त्याज्य है। इस मदिरा ने अनेक सम्पत्तिवानों को भिखारी बना दिया है। मदिरा ही नहीं मदिरासेवी से भी दूसरी बनाकर रहें।