जीवन तो सभी को मिलता है और वह जैसे-तैसे कट भी जाता है पर जीवन को अच्छे ढंग से जीना बहुत कम लोग जानते हैं। किसी भी प्रकार का असंयम निश्चय ही जीवन अवधि को अल्प और दु:खी बनाता है, इसलिए जीवन को दीर्घायु और सुखी बनाने के लिए प्रत्येक बात में संयम से काम लेना बुद्धिमानी है।
जिस प्रकार उत्तम स्वास्थ्य का रहस्य संतुलित-सात्विक भोजन है, उसी प्रकार सुखी जीवन का रहस्य भी संतुलित और संयमित व्यवहार है। वास्तव में हमारा जीवन एक-एक पुस्तक के पृष्ठों के समान है। यदि हम अपनी जीवन-पुस्तक को संतुलित रखते हैं तो उसके पिछले पृष्ठों को पढ़कर भावी जीवन में लाभ उठाया जा सकता है। यदि ऐसा नहीं करते, तब भी जीवन के पूर्वार्द्ध के समाप्त होने पर उसके उत्तरार्द्ध भाग को संतुलित बनाया जा सकता है अत: निराश होने का कोई कारण नहीं है। जीवन में जहां कहीं भी कमी अथवा असंतुलन हो तो उसे ठीक करने का हमें सतत प्रयत्न करना चाहिए। ऐसा करने से ही जीवन सुखमय बन सकेगा।
आज तक यह नहीं देखा गया कि असंतुलित जीवन यापन करने वाले शरीर और मन से स्वस्थ रहकर लोगों ने लंबी आयु पाई हो और उनकी स्वाभाविक मृत्यु हुई हो जबकि इसके विपरीत ऐसे अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं कि जिन लोगों ने सतर्क रहकर संतुलित और संयमी जीवनयापन किया है उन्हें दीर्घायु प्राप्त हुई है और वे प्राकृतिक मृत्यु से मरे हैं।
शरीर के स्वास्थ्य को पूर्णत: बनाये और स्थिर रखने के लिए जीवन को ऐसे संयमित ढंग से ढालना चाहिए जिसका मानव-जीवन के कल्याण से संबंधित प्राकृतिक विधानों के साथ पूरा-पूरा सामंजस्य हो। इसका अभिप्राय हर प्रकार की अतियों, बुरी आदतों और व्यसनों से दूर रहना है जो हमारी जीवनी शक्ति का शोषण और शरीर में आरोग्य प्रदान करने वाली एवं स्वस्थ रखने वाली शक्ति को क्षीण किया करते हैं।
संतुलित जीवन और संयम एक-दूसरे पर आश्रित हैं। एक का दूसरे के बिना काम नहीं चल सकता। संयम मानव जीवन का सर्वोच्च आदर्श है। आहार-विहार, आचार-विचार, व्यवहार आदि संतुलित जीवन के समस्त क्रिया कलाप में संयम की मर्यादा का पालन कर मनुष्य शरीर, चित्त और मस्तिष्क से स्वस्थ और सुखी बना रह सकता है। संयम अर्थात् इंद्रिय निग्रह करना जरा कठिन अवश्य है पर यही वास्तविक जीवन कला है जिसके बिना मनुष्य किसी भी अवस्था में सुखी नहीं रह सकता। संयम मन, वाणी और कर्म तीनों का होना चाहिए।
संसार में सभी दीर्घजीवी संयमित जीवन यापन से ही दीर्घायु के अधिकारी हुए है। इस संबंध में 9० वर्ष से अधिक आयु वाले व्यक्तियों की आदतों और रहन-सहन का अध्ययन करने पर पता लगा कि उनकी लंबी आयु का रहस्य मुख्यत: उनका संयमित जीवन ही था। वे शराब, तंबाकू व नशीले पदार्थों आदि को छूते तक न थे। उनमें से अनेक ने कभी मांसाहार भी नहीं किया था। वे फल, शहद, दूध, सब्जी, मक्खन, घी आदि का सेवन विशेष रूप से करते थे।
वे खूब परिश्रम भी करते थे और गहरी नींद सोते थे। दीर्घजीवी डॉ. राधाकृष्णन कहते थे ‘जीवन में संयम हो और करने के लिए काम हो तो 100 वर्ष तक स्वस्थ जीवन बिताया जा सकता है।’ स्व. पंडित सातवेलकर जी, स्व. लोकमान्य तिलक, सरदार पटेल, महात्मा गांधी तथा 101 वर्षीय डॉ. कर्वे, विश्वेश्वरैया आदि जितने भी महान व्यक्ति हुए, सभी संयमी और संतुलित जीवन अपनाकर ही महान और आयुष्मान बने हैं।
– उमेश कुमार साहू