Monday, December 23, 2024

पीएम मोदी को ‘वायरस’ कहने पर दर्ज हुआ था केस, AIMIM के प्रवक्ता के खिलाफ उत्पीड़नात्मक कार्रवाई पर रोक

प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर अभद्र टिप्पणी करने वाले ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के उत्तर प्रदेश के प्रवक्ता मोहम्मद फरहान को अंतरिम राहत प्रदान की है। कोर्ट ने कहा है कि प्रथमदृष्टया याची द्वारा कहे गए शब्द आईपीसी की धारा 504 के दायरे में नहीं आते हैं।

लिहाजा, पुलिस रिपोर्ट जमा होने तक उसके खिलाफ कोई उत्पीड़नात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी। कोर्ट ने मामले में यूपी सरकार से तीन सप्ताह में जवाब दाखिल करने को कहा है। यह आदेश न्यायमूर्ति अंजनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति नंद प्रभा शुक्ला की खंडपीठ ने प्रयागराज के करेली थाने में मोहम्मद फरहान की ओर से प्राथमिकी को रद्द करने की मांग वाली दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है।

याची के खिलाफ आरोप है कि उसने सोशल मीडिया पर वीडियो पोस्ट कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक वायरस बताया। कहा कि यह एक ऐसा वायरस है, जिसे तत्काल मारक की आवश्यकता है। यह कहा गया कि वह (याची) इस वायरस का वायरस है और इसके खिलाफ समय रहते इलाज करना जरूरी है। नहीं तो यह वायरस पूरे देश को खा जाएगा। याची का वीडियो वायरल होने के बाद उसके खिलाफ करेली थाने में पिछले वर्ष आईपीसी की धारा 504 और आईटी (संशोधन) एक्ट की धारा 66 के तहत प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी। याची ने उसे चुनौती देते हुए रद्द करने की मांग की।

याची की ओर से तर्क दिया कि उसके द्वारा कहा गया शब्द अपमानजनक या अशोभनीय नहीं कहा जा सकता है, जो आईपीसी की धारा 504 के दायरे में आता है। याची ने कहा कि यह धारा तब लागू होती है जब व्यक्ति जानबूझकर किसी अन्य व्यक्ति को उकसाकर उसका अपमान करता है, जिससे लोगों में शांति भंग होती हो। याची ने ऐसा नहीं कहा। याची द्वारा की गई टिप्पणी एक सियासी टिप्पणी थी, जिसके जरिए प्रधानमंत्री को सार्वजनिक शांति भंग करने या किसी अपराध पर टिप्पणी करने के लिए उकसाने के लिए नहीं की गई थी। हालांकि, सरकारी अधिवक्ता ने इसका विरोध किया। कहा कि याची ने प्राथमिकी में आरोपों से इंकार नहीं किया है।

कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद कहा कि मौजूदा मामला आईपीसी की धारा 504 के दायरे में नहीं आता है। इस मामले में विचार करने की आवश्यकता है। लिहाजा, आरोपी को अंतरिम राहत दी जाती है। कोर्ट ने मामले में यूपी सरकार से तीन हफ्ते में जवाब दाखिल करने को कहा है।

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