लखनऊ। उत्तर प्रदेश सरकार ने 1980 में मुरादाबाद जिले में हुए सांप्रदायिक दंगों की जांच रिपोर्ट मंगलवार को दोनों सदन के पटल पर रखी।
विधानसभा में संसदीय कार्य मंत्री सुरेश कुमार खन्ना ने इस रिपोर्ट को सदन में पेश किया। उन्होंने कहा कि 13 अगस्त 1980 को मुरादाबाद में हुए दंगों की जांच रिपोर्ट को विलंब के कारणों सहित सदन के पटल पर रखा जा रहा है।
40 साल बाद सदन में यह रिपोर्ट पेश किए जाने के दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी मौजूद थे। पेश हुई रिपोर्ट मुरादाबाद दंगे की जांच करने वाले सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति एम.पी. सक्सेना की एक सदस्यीय आयोग ने नवंबर 1983 में तत्कालीन सरकार को सौंप दिया था। मगर, उसे सदन में पेश नहीं किया जा सका था।
रिपोर्ट के अनुसार, मुरादाबाद में 13 अगस्त 1980 को ईद की नमाज के समय पथराव और हंगामा हुआ था। इसके बाद सांप्रदायिक हिंसा भड़कने से 83 लोग मारे गए थे और 112 लोग घायल हुए थे। मरने वालों में चार सरकारी अधिकारी एवं पुलिसकर्मी भी थे।
गौरतलब है कि 13 अगस्त 1980 को ईदगाह में ईद-उल-फितर की नमाज अदा करते समय वहां सुअरों को लाए जाने की अफवाह के बाद मुरादाबाद जिले में सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी थी, जो शहर के अन्य इलाकों में फैल गई थी।
आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि ईदगाह व अन्य स्थानों पर गड़बड़ी पैदा करने में कोई भी सरकारी अधिकारी, कर्मचारी या हिंदू उत्तरदायी नहीं था। इनमें भाजपा या आरएसएस की संलिप्तता भी नहीं थी।
आम मुसलमान भी इसमें शामिल नहीं था, बल्कि यह केवल डॉ. शमीम के नेतृत्व वाली मुस्लिम लीग व डॉ. हामिद हुसैन उर्फ डॉ. अज्जी और उनके समर्थकों के साथ भाड़े पर बुलाए गए लोगों की करतूत थी।
आयोग ने पीएसी, पुलिस और जिला प्रशासन पर लगे आरोप भी खारिज कर दिए गए। जांच में पाया गया कि ज्यादातर मौतें पुलिस फायरिंग में नहीं, बल्कि भगदड़ से हुई थी।
रिपोर्ट में बताया गया है कि जब शहर में यह अफवाह फैली कि ईदगाह में नमाजियों के बीच सुअरों को घुसा दिया गया है और उनके भड़कने पर बच्चों समेत बड़ी संख्या में मुसलमानों को मार दिया गया है, तो मुसलमानों ने अपना आपा खो दिया और पुलिस स्टेशनों, चौकियों और हिंदुओं पर हमला कर दिया।
रिपोर्ट के अनुसार, हर समुदाय में कुछ असामाजिक तत्व होते हैं और वे अपनी पुरानी दुश्मनी निपटाने और स्थिति को बदतर बनाने के लिए कौका देखकर तुरंत सामने आ जाते हैं।
आयोग ने राज्य में सांप्रदायिक दंगों की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए कई सुझाव दिए। कहा कि पाकिस्तान से वीजा लेकर आए लोगों को समय सीमा पूरी होने पर कई महीनों तक रुकने की अनुमति देने के बजाय उन्हें वापस भेजा जाए।
सांप्रदायिक दंगों वाले मामलों का निस्तारण न्यायालय में ही होना चाहिए। कोई भी मामला वापस नहीं लेना चाहिए, इससे दो समुदायों में कटुता बढ़ती है।
दंगा होने पर लाउडस्पीकर से अफवाहों का खंडन करना चाहिए। ऐसी अफवाहों से आतंक उत्पन्न होता है और भगदड़ की स्थिति बनती है।
जांच के बाद आयोग की रिपोर्ट को दोनों सदनों (विधानसभा और विधान मंडल) में रखे जाने के लिए मंत्रि परिषद के अनुमोदन के लिए 13.03.1986, 09.06.1987, 22.12.1987, 17.09.1988, 31.07.1989, 20.10.1990, 24.07.1992, 11.12.1992, 01.02.1994, 30.05.1995, 15.02.2000, 17.02.2002, 31.05.2004 और 09.08.2005 को राज्य के अलग-अलग मुख्यमंत्रियों से सहमति मांगी गई।
हालांकि रिपोर्ट को लंबित रखने का फैसला किया जाता रहा।
गौरतलब है कि 1983 में यूपी में विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार थी, जबकि केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी।