मुजफ्फरनगर। नवनिर्वाचित सांसद हरेन्द्र मलिक राजनीतिक के पुराने माहिर खिलाड़ी है। वह छात्रा जीवन से ही राजनीति के दांवपेंच सीख गये थे। अपने पूरे राजनीतिक जीवन में उन्हें दस चुनाव लडने का अनुभव है, जबकि पांच चुनाव अपने पुत्र को भी लड़ा चुके है। हरेन्द्र मलिक एक बार राज्यसभा सांसद भी रह चुके है।
विधानसभा चुनाव में तीन बार जीत व तीन बार हार मिली, लेकिन हौंसला नहीं छोड़ा। हरेन्द्र मलिक इससे पहले भी दो बार मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ चुके है, जबकि एक बार कैराना ेस लोकसभा प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतर चुके है। तीन लोकसभा चुनाव हारने के बाद हरेन्द्र मलिक ने जीत हासिल की और संजीव बालियान को जीत की हैट्रिक लगाने से रोक दिया। हरेन्द्र मलिक पहले ऐसे गैर भाजपाई हैं, जो जाट होने के बावजूद भी जीतने में कामयाब रहे।
इससे पहले चौधरी चरण सिंह से लेकर हरेन्द्र मलिक तक जितने भी जाट प्रत्याशियों ने मुजफ्फरनगर सीट से चुनाव लड़ा उन्हें हार का सामना करना पड़ा। चौधरी चरण सिंह को अपने राजनीतिक जीवन की एकमात्र हार मुजफ्फरनगर से ही मिली थी। इस सीट पर भाजपा प्रत्याशी के रूप में नरेश बालियान, सोहनवीर सिंह व संजीव बालियान चुनाव जीते है और तीनों ही जाट समुदाय से आते है।
इन तीनों के अलावा अब तक जो भी जाट समुदाय से चुनाव लड़ा है, उसे हार का मुंह देखना पड़ा। हरेन्द्र मलिक ने इस मिथक को भी तोड़ दिया है और सपा प्रत्याशी के रूप मंे ऐतिहासिक जीत हासिल की है। अपनी जीत के बाद उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी भाजपा प्रत्याशी संजीव बालियान की हार पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यह भाजपा के अहंकार की हार है।