लखनऊ । लोकसभा चुनाव वर्ष 2024 में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के साथ गठबंधन की उम्मीद छोड़कर समाजवादी पार्टी (सपा) अब दलितों को लुभाने की कोशिश कर रही है। पार्टी आगामी अंबेडकर जयंती पर अपने अभियान की शुरूआत करेगी। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव 3 अप्रैल को रायबरेली में एक समारोह में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के संस्थापक कांशीराम की प्रतिमा का अनावरण करेंगे। बसपा ने इस पर आपत्ति जाहिर की है।
पार्टी सूत्रों के मुताबिक अखिलेश बसपा संस्थापक कांशीराम के 1993 में सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के साथ गठबंधन को याद करेंगे और वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में ताकतों को एक साथ आने की जरूरत को रेखांकित करेंगे।
सपा के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा कि बसपा आज अपने संस्थापक कांशीराम और बाबासाहेब अम्बेडकर के दिखाए रास्ते से भटक गई है। कांशीराम और मुलायम सिंह यादव के अनुयायियों को राष्ट्र निर्माण के लिए एक बार फिर हाथ मिलाने की तत्काल आवश्यकता है। यह सामाजिक न्याय के अपने विचार को आगे बढ़ाने का समय है जिसे दोनों नेताओं ने पहली बार 1993 में साझा किया था।
सूत्रों के मुताबिक सपा नेतृत्व को लगता है कि कम से कम एक दर्जन लोकसभा क्षेत्रों में ओबीसी-दलित गठजोड़ अपनी संख्या के बल पर गेम चेंजर बन सकता है। राजनीतिक गलियारों में इस कदम को 2022 के विधानसभा चुनावों में भाजपा के साथ खड़े गैर-जाटव दलितों को 2024 में अपने पक्ष में करने और बसपा के जाटव वोट आधार में सेंध लगाने की सपा की नवीनतम रणनीति के रूप में देखा जा रहा है।
पार्टी की इस रणनीति का व्यापक ढांचा हाल ही में गठित पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति में भी देखा गया, जहां समिति में 62 सदस्य जिसमें लगभग 35 प्रतिशत गैर-यादव ओबीसी समुदायों से थे, विशेष रूप से पासी, कुर्मी, राजभर और निषाद जैसे चुनावी प्रभावशाली समुदायों से थे। राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति की सूची में कुल छह सदस्य दलित थे।
इसके अलावा अखिलेश अयोध्या के विधायक अवधेश प्रसाद को पार्टी के दलित चेहरे के रूप में प्रचारित कर रहे हैं। नौ बार के विधायक न केवल राज्य विधानसभा में पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव के बगल वाली सीट साझा करते हैं, बल्कि हाल ही में कोलकाता में पार्टी की दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के दौरान यादव के साथ मंच साझा करते हुए भी देखे गए।