मेरठ। देश विरोधी संगठनों द्वारा जनभावनाएं भड़काने की कोशिश के विरोध में एक निजी विवि के पत्रकारिता विभाग में एक परिचर्चा का आयोजन किया गया। इस दौरान देश विरोधी संगठनों और फर्जी खबरों को बढावा देने वाले समाचार पत्रों और ऐसे सोशल मीडिया पोर्टलों पर प्रतिबंध की मांग की गई।
परिचर्चा में आए अतिथि पंकज राज ने कहा कि देश विरोधी संगठनों को वर्तमान में भारत की छवि और इसकी लंबे समय से चली आ रही समकालिक संस्कृति को बदनाम करने की कोशिश में लिप्त होते देखा जा रहा है। उन्होंने कहा कि ये लोग हाशिए पर जाने की भावना भड़काते हैं। फर्जी खबरों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर, तथ्यों को दबा और गलत तरह से भारत और इसकी संस्कृति की छवि को खराब करने का काम कर रहे हैं। ऐसे लोग देश की शांतिपूर्ण और धर्मनिरपेक्ष छवि को धूमिल करने के लिए कमर कसे हुए हैं। मोहम्मद याकूब खान ने कहा कि ‘बेबाक कलेक्टिव’ नामक एक संगठन (भारत के विभिन्न राज्यों में कार्यरत स्वायत्त महिला समूह का एक गठबंधन), मुसलमानों पर कथित अत्याचारों का प्रसार कर रहा है। ‘बेबाक कलेक्टिव’ खुद को एक नारीवादी संगठन के रूप में पेश करता है, जो हाशिए की महिलाओं के अधिकारों के लिए बोल रहा है।
उन्होंने कहा कि संगठन ने लोकप्रियता हासिल करने और अल्पसंख्यकों का विश्वास जीतने के लिए एक रिपोर्ट जारी की। जिसमें मुसलमानों की भावनात्मक, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक, आर्थिक और अन्य समस्याओं की जांच की गई। इसके कहा है कि जिन क्षेत्रों में मुसलमान लगातार हिंसा का शिकार होते थे, उनके मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
ऐसी चीजों की रिपोर्टिंग और गलत व्याख्या करके यह संगठन भारत को अल्पसंख्यकों के खिलाफ घृणा और हिंसा के प्रचारक के रूप में चित्रित करता है। उन्होंने कहा कि संगठन मुख्य रूप से अपने निहित स्वार्थों को फलने-फूलने में लगा है। इसका महिलाओं के कल्याण से कोई लेना-देना नहीं है। इसने न तो ‘खुला’ के मुद्दे को छुआ है, जो कि तलाक के लिए एक मुस्लिम महिला का अधिकार है, और न मुस्लिम पुरुष के इस्लाम में एकाधिकार पर सवाल उठाया है। अगर वो वास्तव में मुस्लिम महिलाओं के लिए कुछ करने की चाहत रखता है तो उन्हें उनके लिए आधुनिक/व्यापार उन्मुख शिक्षा या कौशल कार्यक्रमों पर जोर देना चाहिए।
उन्होंंने कहा कि हकीकत यह है कि भारत सरकार द्वारा लागू की ‘अल्पसंख्यकों के लिए कल्याणकारी योजनाओं से आज देश के मुसलमान खुश और संतुष्ट हैं। देश के संविधान और न्यायपालिका में निहित अपने अधिकारों से आज सबसे अधिक संतुष्ट हैं। लोगों को जानबूझकर गुमराह करने और जनता के बीच सत्ता-विरोधी भावनाओं को भडकाने के लिए झूठे प्रचार पर प्रतिक्रिया देने से पहले कथित सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील मुद्दों और हिंसा की घटनाओं के पीछे के तथ्यों की पुष्टि करनी चाहिए। इस दौरान परिचर्चा में अन्य वक्ताओं ने भी ऐसे संगठनों के विरोध में अपने विचार व्यक्त किए।