लखनऊ। लखनऊ शहर के कैसरबाग, अमीनाबाद, अकबरी गेट इलाकों में स्टाइलिस हुक्का की अंधाधुंध बिक्री हो रही हैं। हुक्का बार पर रोक लगाने वाली लखनऊ कमिश्नरेट पुलिस हुक्का बिक्री पर रोक नहीं लगा सकती है। यही कारण है कि हुक्का के नाम पर लखनऊ में तेजी से नशे का कारोबार बढ़ रहा है।
तहजीब के शहर में हुक्का पीना एक नजाकत की बात रही है। पुराने लखनऊ में अभी भी कई सारे घरों में पुराने हुक्का को रखा देखा जा सकता है। हुक्का पीने वाले अब पुराने हुक्का के स्थान पर स्टाइलिस हुक्का की मांग करते हैं। हुक्का को गरम करने के लिए उपयोग होने वाले सुखे पत्तो में ही नशा रखकर किया जाता है।
हुक्का के नाम पर लखनऊ में तेजी से नशे का कारोबार बढ़ा है। अमीनाबाद में हुक्का को बेचने वाले आतीफ के अनुसार हुक्का में औषधि मिलायेंगे तो शरीर को फायदा करेगी। नशा मिलायेंगे तो शरीर को कमजोर कर देगी। ये तो हुक्का पीने वाले के ऊपर है, वो क्या करना चाहता है। हुक्का आज भी लोगों की पसंद है। तभी तो इसकी बिक्री होती है।
हुक्का पीना पसंद करने वाले नजीर ने कहा कि एक वक्त था, जब हुक्का एक समय पीने के लिए सभी दोस्त इकट्ठा हुआ करने थे। अब कहां हुक्का पर जोर दिया जाता है। नये उम्र के बच्चे हुक्का को नशा से जोड़ते है। जो पूरे समय नशा करने के लिए हुक्का उपयोग करते है। पहले के जमाने में हुक्का तलब हुआ करती थी, जैसे एक समय चाय पीया जाता था। वैसे ही हुक्का को पीया जाता था।
हुक्का के मूल्य पर नहीं है कोई टैक्स
लखनऊ सहित प्रदेश के विभिन्न जनपदों में हुक्का की बिक्री होती है। सांचे में ढ़ाल कर स्टाइलिस हुक्का को बनाया जाता है। पश्चिम उत्तर प्रदेश के जिलों में ज्यादा हुक्का बनती है। वैसे लखनऊ के कारीगर यहां अपना ही हुक्का बनाते है। इसकी बिक्री पर अभी कोई टैक्स नहीं है। इसके कारण स्टाइलिस हुक्का का मूल्य पांच सौ से लेकर दो हजार रुपये तक ही रखा गया है। आर्डर देने पर भारी हुक्का भी बनाते हैं, जिसके मूल्य काम के आधार पर होते हैं।
हुक्का बार पर पुलिस की रहती हैं नजर
लखनऊ में रेस्टाेरेंट, हुक्का बार पर कमिश्नरेट पुलिस की नजर रहती है। आये दिन हुक्का बार में नशे के कारोबार की सूचनाएं मिलने पर छापेमारी भी होती हैं। हुक्का पीने और पिलाने वाले लोगों को पुलिस हिरासत में लेती हैं। फिर भी हुक्का बार तक नशा पहुंचाने वाले पुलिस की गिरफ्त से दूर रहते हैं। उनके ऊपर कोई कार्रवाई नहीं हो पाती है।
हुक्का बनाने वाले उस्ताद, नशा बेचने वाले चेले
बाजार में हुक्का पहुंचने के पीछे हुनरमंद उस्तादों की मेहनत छुपी होती है। एक हुक्का बनाने में जो समय लगता है, उतना ही वक्त उसकी बिक्री के लिए बाजार तक पहुंचाने में लग जाता है। इसके बाद बार या रेस्टाेरेंट में हुक्का पीने के नाम पर सामान्य रुप से फ्लेवर का टेस्ट की बात होती है। मिंट फ्लेवर, नाइस फ्लेवर के धुंआ से शुरु होने वाला यह खेल नशा बेचने वाले चेलों के हाथ में चला जाता है। नशा कारोबारी चुपके से नौजवानों को नशा चखा कर उसका आदी बना देता है।