लखनऊ। उत्तर प्रदेश हाई कोर्ट ने आज दो बड़े फैसले सुनाए है। जिसमें कानून के जानकारों का कहना है कि उत्तर प्रदेश हाईकोर्ट के इन दो फैसलों के बाद उत्तर प्रदेश की पुलिस को अपनी जांच पड़ताल करने का तरीका बदलना पड़ेगा। इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश हाई कोर्ट के फैसलों का असर पूरे देश की कानून व्यवस्था पर पढ़ने की संभावना जताई जा रही है।
बता दें कि उत्तर प्रदेश के हाई कोर्ट (इलाहाबाद हाईकोर्ट) ने कहा है कि किसी आरोपी के फरार होने के आधार पर उसे आरोपी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। यह फैसला सुनाते हुए उत्तर प्रदेश हाई कोर्ट ने 25 साल पुराने हत्या के एक मामले में आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे व्यक्ति को बरी कर दिया है। हमारे प्रयागराज संवाददाता आरपी दुबे की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश के आगरा में रहने वाले राजवीर की याचिका पर उत्तर प्रदेश हाई कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस न्यायमूर्ति राजीव गुप्ता तथा जस्टिस शिव शंकर प्रसाद की पीठ ने यह फैसला सुनाया है। इस फैसले के विवरण में बताया गया है कि उत्तर प्रदेश के आगरा के डौकी थाना क्षेत्र में राजवीर सिंह पर पांच अगस्त 1999 में अपने सगे भाई नेम सिंह की हत्या के मामले में मुकदमा दर्ज किया गया था। पुलिस ने पहले अज्ञात में मुकदमा दर्ज किया था। बाद में संदेह के आधार पर राजवीर को आरोपी बनाया। 16 अगस्त, 1999 को अपीलकर्ता को गिरफ्तार किया गया और उसका बयान दर्ज किया गया।
उसकी निशानदेही पर एक कुल्हाड़ी, उसके कमरे से खून से सना हुआ पायजामा और शर्ट भी बरामद किया गया। ट्रायल कोर्ट ने अपीलकर्ता को दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई। आदेश से व्यथित होकर उत्तर प्रदेश के हाईकोर्ट में अपील दायर की गई है। याची अधिवक्ता ने दलील दी कि आरोपी के घर से कुल्हाड़ी और कपड़ों की कथित बरामदगी भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत साबित नहीं हुआ है। उसे बरी किया जाना चाहिए।
उत्तर प्रदेश हाई कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजीव गुप्ता तथा न्यायमूर्ति शिव शंकर प्रसाद ने कहा कि आरोपी के फरार हो जाने का यह अर्थ नहीं है कि वह अपराधी है। किसी आरोपी के फरार होने मात्र से ही उसे दोषी नहीं ठहराया जा सकता। यह टिप्पणी करते हुए उत्तर प्रदेश हाई कोर्ट ने राजवीर को रिहा करने का आदेश जारी कर दिया है।
एक दूसरे फैसले में उत्तर प्रदेश हाईकोर्ट ने बड़ा आदेश दिया है। अपने फैसले में उत्तर प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा है कि केवल किसी चश्मदीद की गवाही पर किसी आरोपी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।
आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश हाईकोर्ट ने मेरठ के 46 साल पुराने हत्या के मामले में दोषी ठहराए एक व्यक्ति को बरी कर दिया है। ट्रायल कोर्ट ने उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। न्यायमूर्ति सिद्धार्थ व न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की पीठ ने कहा कि बिना वैज्ञानिक साक्ष्य के एक चश्मदीद की गवाही पर किसी को दोषी ठहराना बेहद खतरनाक है। चाहे दस्तावेजी साक्ष्य हो या प्रत्यक्षदर्शी, उसकी भी पुष्टि की जरूरत होती है। मेरठ के जानी थाना में 31 मई 1978 में करमवीर की हत्या में पिता चमेल सिंह ने मुकदमा दर्ज कराया था। आरोप लगाया था कि अपीलकर्ता इंद्रपाल, सोहनवीर दीवार फांदकर घर में घुस आए वे और करमवीर की गोली मारकर हत्या करने के बाद भाग निकले।
तहरीर के अनुसार सोहनवीर की चमेल सिंह की चचेरी बहन से अवैध संबंध थे। करमवीर ने अवैध संबंधों को रोकने का प्रयास किया था। इसीलिए अपीलकर्ताओं ने उसकी हत्या कर दी। ट्रायल कोर्ट ने 26 नवंबर 1980 के आदेश से आरोपी अपीलकर्ता इंद्र पाल, सह- आरोपी सोहनवीर को दोषी ठहरा उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई। यह सजा घटना के एकमात्र प्रत्यक्षदर्शी की गवाही पर सुनाई गई थी। ट्रायल कोर्ट का मानना था कि गवाह मृतक का सगा भाई है और वह घटना के समय मौजूद था। ऐसे में उसकी गवाही पर अविश्वास करने का कोई औचित्य नहीं है। ट्रायल कोर्ट के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। अपील के लंबित रहने के दौरान सह-अभियुक्त सोहनवीर की मृत्यु हो गई।
इस प्रकार उसकी अपील खारिज कर दी गई। याची अधिवक्ता ने दलील दी कि एकमात्र प्रत्यक्षदर्शी मृतक का भाई विजेंद्र सिंह की गवाही पर भरोसा नहीं किया जा सकता। अपराध में प्रयोग किए गए हथियार को न बरामद किया गया और न ही अदालत में पेश किया गया। यह फैसला सुनाते हुए उत्तर प्रदेश हाईकोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा काट रहे इन्द्रपाल को बरी कर दिया।