मुज़फ़्फ़रनगर। भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता धर्मेंद्र मलिक ने केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल को पत्र लिखा है। जिसमें उन्होंने कहा कि दुनिया में चावल, डाइट, संस्कृति एवं अर्थव्यवस्था पर प्रभाव डालने वाला प्रधान एवं प्रमुख कृषि उत्पाद है। स्थानीय दरों को स्थिर करने के लिए, 20 जुलाई 2023 को, एक निर्यात प्रतिबंध लागू किया गया था। मंडी में अतिरिक्त आपूर्ति होने की वज़ह से दाम में गिरावट आ रही है और चावल उत्पादक किसानों को नुकसान हो रहा है।
कहा कि भारत में चावल की बुआई में 5 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है, क्योंकि गैर-बासमती सफेद चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के फैसले से कृषि आय में कमी आएगी और उत्पादकों को अन्य फसलों की ओर रुख करने को मजबूर होना पड़ेगा। भारतीय किसान, जो आमतौर पर जून और जुलाई के बरसात के महीनों में चावल लगाते हैं, अक्टूबर में फसल की कटाई शुरू कर देंगे। इस दौरान यदि निर्यात पर पाबंदी लगी होगी, किसानों को खुले बाजार में कम मूल्य मिलेगा।
वर्ष 2023 तक चावल का उत्पादन 135 मीट्रिक टन तक पहुंच गया है, जबकि खपत 109 मीट्रिक टन है। पिछले कुछ वर्षों में 15 मिलियन टन से अधिक गैर-बासमती चावल निर्यात के लिए उपलब्ध था। 1 जुलाई 2024 तक एफसीआई के पास 50 मिलियन टन स्टॉक है, जबकि बफर स्टॉक की आवश्यकता 13.54 मीट्रिक टन है, जो 3.5 गुना से अधिक है।
इसके अलावा अंतर-मंत्रालयी समूह अतिरिक्त स्टॉक को समाप्त करने के तरीकों और साधनों का अध्ययन कर रहा है। देश में अक्टूबर 2024 से नई फसल की आवक बढ़ने की उम्मीद है। एमएसपी पर खरीद के लिए भारत सरकार पर भारी दबाव होना तय है। जुलाई तक, एफसीआई के पास भंडारण के लिए कोई जगह नहीं है और उसे चावल मिलर्स के पास 17 मिलियन टन चावल स्टोर करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।
हाल के वर्षों में चावल का उत्पादन लगातार बढ़ रहा है जैसा कि तेलंगाना में देखा गया है कि यह 2018-19 में 66.7 लाख टन से बढ़कर 2022-23 में 164 लाख टन हो गया है। बिहार ने उत्पादन 63 लाख टन से बढ़ाकर 76 लाख टन हो गया है। आंध्र प्रदेश के पास 2023 तक 4.40 मिलियन टन का विशाल अधिशेष स्टॉक है। इसलिए चावल के अत्याधिक उत्पादन से निर्यात किया जा सकता हैं। हम भारत सरकार से चावल के निर्यात पर प्रतिबंध को तुरंत हटाने की अपील करते हैं।