चिंपू बंदर फारेस्ट विभाग के ऑफिस में काम करता था। लोकल ट्रेन से वह रोज सुबह आफिस जाता और शाम तक घर लौट आता था।
वह जब टेऊन में सवार होता तो सीट पर बैठते ही ऊंघने लगता था। नींद में उसकी गरदन कभी बायीं तो कभी दायीं तरफ बैठे जानवर के कंधे से टकरा जाती। कभी सामने की तरफ इतना झुक जाती कि वह गिरते गिरते बचता, उसे अपने बैग की भी सुध नहीं रहती थी। उसकी ऊंघने की आदत पर आसपास बैठे जानवरों से उसे कई बार झिड़की भी सुननी पड़ जाती थी तो कभी मजाक भी सुनना पड़ जाता था।
कोई कहता, ‘अरे भाई, घर में रात भर सोते नहीं हो क्या जो ट्रेन में ऊंघ रहे हो।
कोई मजाक उड़ाता, ‘लगता है यह घर में रात में मच्छर मारता है, इसलिए यहां ट्रेन में सो रहा है।’
ऊंघने की आदत के कारण ट्रेन में रोज उसे जानवरों से झिड़की और बातें सुननी पड़ती थी लेकिन फिर भी उसकी यह आदत नहीं छूटती थी।
लोकल ट्रेन में काफी भीड़ रहती थी। एक दिन चिंपू ने सोचा कि अगर मैं किसी जानवर के लिए सीट रख लूं तो वह मेरे ऊंघने पर एतराज नहीं करेगा। वह मेरे बैग की रखवाली भी करेगा।
एक दिन वह ट्रेन में सवार हुआ और अपना बैग एक खाली सीट पर रखकर बैठ गया।
तभी वहां एक लोमड़ आया।
‘क्या यह बैग आपका है?’ लोमड़ ने बैग की तरफ देखते हुए चिंपू से पूछा, ‘मैं यहां बैठ जाऊं?’
चिंपू ने बैग उठा कर गोद में रख लिया और कहा, ‘बैठ जाइए।’
‘थैंक्यू,’ कहकर लोमड़ बैठ गया।
‘कहां तक जाएंगे आप?’ चिंपू ने लोमड़ से पूछा।
‘मैं बीयरपार्क तक जाऊंगा।’ लोमड़ ने कहा।
लोमड़ से बात करते करते चिंपू ऊंघने लगा।
‘लगता है आपको नींद आ रही है’ लोमड़ ने कहा।
‘हां, ट्रेन में बैठते ही मुझे नींद आने लगती है,’ चिंपू बोला, ‘आप तो बीयरपार्क तक जाएंगे। मैं जरा सी झपकी मार लेता हूं। मुझे भी वहीं तक जाना है। जरा मेरे बैग का ख्याल रखिएगा।’
इतना कह कर चिंपू झपकी लेने लगा। चिंपू को झपकी लेते देख लोमड़ ने धीरे से उस का बैग उठाया और अगले स्टेशन पर चुपके से उतर गया।
कुछ देर बाद किसी ने चिंपू को जगाया और पूछा, ‘अरे भाई, कहां जाना है?’
चिंपू हड़बड़ाता हुआ बोला, ‘बीयरपार्क आ गया है? वह लोमड़ कहां गया? मेरा बैग भी नहीं है।’
‘लोकल ट्रेन में सोओगे तो बैग गायब होगा ही,’ सामने की सीट पर बैठे खरगोश ने कहा, ‘थोड़ी सी दूर जाने में भी भला कोई सोता है।’
‘दरअसल ट्रेन में बैठते ही मुझे ऊंघ आने लगती है। मुझे क्या पता था कि सोते ही वह चोर लोमड़ मेरा बैग चुरा कर भाग जाएगा।’ चिंपू बोला।
उसकी बात सुनकर खरगोश ने कहा, ‘इसमें तो गलती तुम्हारी है। ट्रेनों में चोर ऐसे ही मौके की तलाश में रहते हैं। तुम्हें अपनी गलती से सबक लेना चाहिए। लोकल ट्रेन में कभी नहीं सोना चाहिए।’
‘तुम ठीक कहते हो। अब मैं लोकल ट्रेन में कभी नहीं सोऊंगा।’ चिंपू ने दुखी मन से कहा और अपना स्टेशन आते ही उतर कर आफिस की तरफ चल दिया।
– हेमंत यादव