जिस गति से भारत में नशे का धंधा बढ़ रहा है वह अति चिंता का विषय है, भारत की नौजवान पीढ़ी को एक षडयंत्र के अधीन नशेड़ी बनाया जा रहा है। अब भारतीय बच्चे पेट्रो रसायनों के नशे का शिकार हो रहे हैं। अगर भारत का बचपन ही नशेड़ी हो जाएगा तो नौजवान पीढ़ी का क्या हाल होगा।
महानगरों में रहने वाले लाखों बच्चे पेट्रोल ग्लू (जूते चिपकाने वाला लोशन), जेरोकफ पदार्थ, वार्निश, ग्रीस इत्यादि के सेवन के आदी हो चुके हैं। 5 से 10 साल तक के बच्चे अपनी भूख दबाने,कल्पनालोक में जीने तथा अकेलेपन से बचने के लिए पेट्रोलियम पदार्थों को सूंघते हैं।
उल्लेख्रनीय है कि इन बच्चों को पेट्रोलियम पदार्थ बड़ी आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। हाईड्रोजन से बने इन पदार्थों का बच्चों की त्वचा पर कुप्रभाव पड़ता है। कई बार दिल पर भी बुरा असर पडऩे से बच्चों की मौत हो जाती है। कई बार ज्यादा सुंघने से बच्चों के दिमाग पर बुरा असर पड़ता है,कई बार स्मरण शक्ति भी मंंद पड़ जाती है। फेफड़े खराब हो रहे हैं और भूख नहीं लगती। देखने में आया है कि नशीले पदार्थों का व्यापार करने वाले लोगों द्वारा नशा बेचने के लिए इन्हीं बच्चों को प्रयोग में लाया जाता है।
केंद्रीय स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी किए आंकड़ों से पता चलता है कि 5 वर्ष से कम बच्चे पेट्रो रसायनों के नशे का शिकार हो रहे हैं, जांच कमेटी की रिपोर्ट से पता चलता है कि रेलवे लाईनों के पास रहने वाले बच्चे रेल से कटकर मर रहे हैं,अधिकतर गाडिय़ों से कटकर मरने वाले बच्चों ने किसी तरह का नशा किया हुआ था, बाद में यह भी पता चला कि ज्यादा नशा करने के कारण इन बच्चों की दिमागी स्थिति काफी बिगड़ चुकी थी। वह गाड़ी की दूरी का अंदाजा नहीं लगा सके। जिसके कारण गाडिय़ों की चपेट में आ जाते हैं।
सूत्रों से पता चलता है कि न केवल स्ट्रीट चिल्ड्रन बल्कि अमीर और मध्य परिवार के बच्चे भी पेट्रो रसायन के नशे के साथ उन पदार्थों से नशा प्राप्त कर रहे हैं जो उनके घरों से आसानी से उपलब्ध हैं। डाक्टरों का कहना है कि नशे का सेवन करने का सबसे बड़ा कारण अकेलापन, पढ़ाई का बढ़ता दबाव और अभिभावकों की ऊंची ऊंची आकांक्षाए बताई जाती है।
एक सर्वेक्षण के अनुसार बड़े बड़े महानगरों में लाखों स्ट्रीट चिल्ड्रन मौजूद हैं।
दिल्ली में 8 लाख से ज्यादा बच्चे तरह तरह के नशे का सेवन कर रहे हैं,इसमें 68 फीसद बच्चे 18 साल तक के हैं, 5 फीसद से ज्यादा बच्चे पेट्रो रसायनों का नशा कर रहे हैं। कुछ लोग बूट पॉलिश का काम करते हैं। कुछ बच्चे कूड़ा बीनने का काम करते हैं। यह लोग गरीबी का शिकार हो कर इन कामों में लगे हुए हैं। बचपन में अच्छा खाना,अच्छा पहनना, खिलौनों से खेलने का सपना टूट चुका है।
दिल्ली में 8 लाख से ज्यादा बच्चे तरह तरह के नशे का सेवन कर रहे हैं,इसमें 68 फीसद बच्चे 18 साल तक के हैं, 5 फीसद से ज्यादा बच्चे पेट्रो रसायनों का नशा कर रहे हैं। कुछ लोग बूट पॉलिश का काम करते हैं। कुछ बच्चे कूड़ा बीनने का काम करते हैं। यह लोग गरीबी का शिकार हो कर इन कामों में लगे हुए हैं। बचपन में अच्छा खाना,अच्छा पहनना, खिलौनों से खेलने का सपना टूट चुका है।
डाक्टरों का कहना है कि नशे का सेवन करने वाले बच्चे कल्पना की दुनिया में पहुंच जाते । यह नशीले पदार्थ बच्चों की भूख को ही समाप्त कर देते हैं, नशा सूंघने के पश्चात वह तनाव मुक्त हो जाते हैं।
समाजसेवी संगठनों का मानना है कि गली-गली बाजारों में कूड़ा बीनने वाले अधिकतर बच्चों को यह नशा आसानी से मार्केट में उपलब्ध हो जाता है।
केंद्रीय सरकार के आंकड़ों से पता चलता है कि नशीले पदार्थों की तस्करी करने वाले बड़े बड़े लोग इन बच्चों का नशे की खेप इधर से उधर करने में उपयोग करते हैं। अमृतसर, लुधियाना,जालंधर जैसे बड़े शहरों में पेट्रो रसायन नशा का धंधा बड़े पैमाने पर चल रहा है।
समाजसेवी संगठनों का मानना है कि गली-गली बाजारों में कूड़ा बीनने वाले अधिकतर बच्चों को यह नशा आसानी से मार्केट में उपलब्ध हो जाता है।
केंद्रीय सरकार के आंकड़ों से पता चलता है कि नशीले पदार्थों की तस्करी करने वाले बड़े बड़े लोग इन बच्चों का नशे की खेप इधर से उधर करने में उपयोग करते हैं। अमृतसर, लुधियाना,जालंधर जैसे बड़े शहरों में पेट्रो रसायन नशा का धंधा बड़े पैमाने पर चल रहा है।
सुभाष आनंद – विनायक फीचर्स