Wednesday, May 8, 2024

पढऩे से जी चुराते बच्चे

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– चन्द्र प्रभा सूद
प्राय: माता-पिता परेशान रहते हैं कि बच्चे पढऩे में मन नहीं लगाते। वे अपनी पुस्तकों को देखना भी नहीं चाहते। विद्यालय से मिले हुए गृहकार्य को जल्दबाजी में करके वे अपना पिंड छुड़ाते हैं। उन्हें किसी वस्तु की कमी माता-पिता नहीं रहने देते, फिर भी वे उनकी उम्मीदों पर खरे नहीं उतरते। घूमने-फिरने, खेलने-कूदने, टी वी देखने और सारा दिन मोबाईल पर अपना समय व्यतीत करना चाहते हैं।

कहने का तात्पर्य यह है कि बच्चे हर समय अपनी मनमानी करना चाहते हैं। क्या कभी इस बात का पता करने का यत्न किया है कि आखिर बच्चे मनमानी क्यों करते हैं? बच्चों का पढऩे से जी चुराने का कारण क्या है? उनका ध्यान दूसरी ओर क्यों रहता है? वे आखिर खेल-कूद में क्यों लगे रहते हैं? टी वी और मोबाईल उन्हें क्यों अधिक अच्छे लगते हैं? बच्चे आखिर पढऩे के लिए कहने पर अपने माता-पिता की अवहेलना क्यों करते हैं?

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ये कुछ प्रश्न हैं जिनके हल खोजे जाने चाहिए। आजकल बच्चों को खिलौनों से भी अधिक टीवी और मोबाइल पसन्द आते हैं। इसका बहुत बड़ा कारण है। बच्चा जब छोटा होता है, उस समय माँ उसे उसका मनपसन्द गाना या टीवी कार्यक्रम लगाकर बिठा देती है या मोबाईल दे देती है ताकि उन्हें देखता हुआ बच्चा आराम से नाश्ता या खाना खा ले। उस समय बच्चे ने क्या खाया, कितना खाया, उसे पता ही नहीं चलता।

इसके अतिरिक्त यदि माता-पिता कोई कार्य करना चाहते हैं और बच्चों की डिस्टरबेंस नहीं चाहते, तो उस समय वे बच्चों को टीवी चलाकर बैठने के लिए कह देते हैं या उन्हें व्यस्त रखने के लिए मोबाइल पकड़ा देते हैं। यही कारण है कि धीरे-धीरे बच्चे टीवी और मोबाइल के अभ्यस्त हो जाते हैं। उन्हें इनमें आनन्द आने लगता है। माता-पिता आवाज लगाते रहें, वे उसे अनसुना कर देते हैं।

यदि बच्चों से जबर्दस्ती टीवी बन्द करवाया जाए या उनसे मोबाइल ले लिया जाए, तो वे चीख-पुकार मचाते हैं। यह कुछ प्रमुख कारण हैं जो बच्चे के सर्वांगीण विकास के लिए बाधक बन रहे हैं। इनके अतिरिक्त बच्चा घर में खिलौनों से खेलना पसन्द करते हैं। घर के बाहर जाना बहुत से बच्चों को अच्छा नहीं लगता। आजकल घर में एक या दो बच्चे होते हैं, उन्हें माता-पिता अनावश्यक लाड़-प्यार करके बिगाड़ देते हैं।

बच्चों का पढ़ाई में मन न लगने का कारण टीवी, मोबाइल और खेलकूद है। बच्चे सारा दिन यदि टीवी और मोबाइल में व्यस्त रहेंगे तो निश्चित है कि उन्हें पढऩे का समय नहीं मिल पाएगा। वे जब पढ़ाई से जी चुराने लगते हैं, तब वे पढ़ाई में पिछड़ जाते हैं। इन सबमें उन्हें आनन्द आता है पर पढ़ाई बहुत बोरिंग होती है। उन्हें अपनी पुस्तकें लेकर बैठने में अच्छा नहीं लगता। वे उससे बचने का बहाना ढूंढते रहते हैं।

जब माता-पिता बच्चों को पढऩे के लिए कहते हैं, उस समय उन्हें पानी की प्यास लग जाती है, भूख लगी है कुछ खाने को दो, टायलेट जाना या फिर कुछ और ऐसे बहाने याद आते हैं, जिन्हें रोक पाना सम्भव नहीं हो पाता। अपने पाठ्यक्रम के अतिरिक्त कामिक्स, कहानी की पुस्तक या उपन्यास पढऩे में उन्हें अधिक रुचिकर लगता है। इन पुस्तकों को पढऩे में उन्हें मजा आता है।

माता-पिता का यह परम दायित्व बनता है कि वे अपने बच्चों को टीवी और मोबाईल का एडिक्ट न बनने दें। टीवी और मोबाईल का समय निश्चित करें, जिससे बच्चे अनुशासित रहें। उन्हें पढ़ाई करने के लिए प्रोत्साहित करें। जीवन की ऊँच-नीच उन्हें इस प्रकार समझाएँ, जिससे उनके बच्चे समझदार बन जाएँ। एक जिम्मेदार नागरिक बनने का अपना दायित्व वे पूर्ण कर सकें।

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